पैरों में जंजीर भारी फ़िर भी जतन से चल रहा हूँ
ना सुनी अपनों की बातें अब बैठ हाथ मल रहा हूँ
टूटे मेरे सपने तो गहरी खाइयों में मैं भी गिर गया
खुद को बचा धीरे धीरे देखो फ़िर से सँभल रहा हूँ
दे कर मुझे भौंरे सा मन कोई भी गुलशन ना दिया
पुष्प रस की प्यास में मैं तो अब भी मचल रहा हूँ
उसे रोशनी देने की खातिर मैं तो सदा जलता रहा
इस जतन में मैं मगर कतरा कतरा पिघल रहा हूँ
शिव तो नहीँ विष को जो मधुकर कंठ में ही रोक ले
चाहा नहीँ पर सारा गरल मैं मुद्दतों से निगल रहा हूँ.
शिशिर मधुकर
umda gazal apki………………………..
Hearty thanks Maninder…….
बाबा भोले की नगरी से आप हैं इसीलिए शायद इतनी क्षमता है आपमें गरल निगलने की. बहुत सूंदर……………..
Dil se Shukriya vijay ……..
Awesome………….,Shishir ji.
So nice of you Meena ji for response…….
लाजवाब ………………………….. मधुकर जी !!
Hearty thanks Sarvjeet ……..
बेहद उम्दा………….
Babbu ji Ghazals I could write because of you.
सुन्दर रचना………….. मधुकर जी ।
I admire your words of appreciation Kajal ji……
Ati sunder rachna Sir!!???
I appreciate your words Dr. Swati ……..