आया है मनभावन मौसम
बहुत दिनों के बाद
बहुत इंतजार के बाद…
आये हैं ढेर सारे फूल
बूढ़ी काकी के अमरूद के गाछ में…
आये हैं दो छोटे-छोटे चमकीले दूधिया दाँत
भाभी के मुन्ने के मुँह में अबकी सावन में…
आई है खुशबू लिए बसंती हवा का संदली झोंका
प्रियतम के जुल्फों और उसके बदन को हौले से छूकर…
कबरी गैया ने इसी माह जना है
एक सुन्दर-सी बछिया काली-चिती-सी…
सजने लगी है फिर से
तरह-तरह के मिठाइयों और खिलौनों की दुकानें
ईदगाह में सालाना जलसे की तैयारी में…
फिर लगने लगे है आँगन में मिट्टी के बर्तनों के ढेर
शुरू किया है बदरी काका ने अपना काम
लम्बी बीमारी से उबरने के बाद…
मन की आस्था और मजबूत हुई है बड़ी बहूरिया की
अपने पति के दूर देश से वापसी की
पूरे पाँच सालों के बाद भी…
जारी है अनवरत आने-जाने
मिलने और बिछुड़ने का सिलसिला इस दुनिया में
ऐसे में तुम कब आओगे?
डॉ. विवेक कुमार
तेली पाड़ा मार्ग, दुमका-814 101
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित।
बेहतरीन…………………….
लाजवाब…………
Beautiful expression of own feelings ……
Very nice poem……
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सदैव की तरह बेहतरीन रचनात्मकता …………अति सुन्दर !!