जब जब तुमने मुझको इस दिल से पुकारा हैं
अपने हाथों से मैंने तेरी बिगड़ी को सँवारा हैं
मैं तड़पा किया कितना भी तन्हाई में अकेले
मगर मुझसे मिलना ना अब तुझको गँवारा हैं
जीता किये तो समझे अच्छा समय हमारा हैं
भूलेगा नहीँ हमको ये जो साथी बढ़ा प्यारा हैं
पर कोई भी मिलन की सूरत तो नहीँ दिखती
पाने को तुम्हे अब यहाँ जन्म लेना दोबारा हैं
शिशिर मधुकर
वाह……सदैव की तरह से लाजवाब…….भाव आपके अहबदीन से बाखूबी उभरे हैं….आपकी जो पहचान है…… मेरी गुस्ताखी या दृष्टता मत समझे कृपया …..अंतिम पंक्ति में “एक” मुझे अटका बस…मजबूरी शो हो रही तो “अब” कैसे लगेगा …
होगा….लिखना था अब लिखा गया…..
Babbu ji I have made certain changes in this work. Please go through now and advise.
सर advise नहीं कर सकता ….मुझे जो लगा वो बोला बस….मजा आ गया सर जो आपने बदल के लिखा है… आपकी सोच….भाव….शब्द लाजवाब….
I appreciate your words of encouragement and affection Babbu ji. Sometimes when we post a work in a hurry without relook such defects remain. Isn’t it?
bahut khub sir…………………………
Thank you so very much Maninder
बेहतरीन सर जी…………………….
Hearty thanks Surendra ……….
बहुत खुबसूरत शिशिर जी ।।
Hearty thanks Nivatiya ji …………
सुंदर भावपूर्ण सृजन, आदरणीय
Thanks Abhishek for your comments ………
खूबसूरत सृजन ………………,
Hearty thanks Meena ji for your appreciation.
मधुकर जी कमाल कर दिया शब्दों का तालमेल है ।
बहुत ही खूबसूरत………………………… ।
Early thanks Kajal ji