मेरा दिल जाने आज इतना क्यों उदास सा था
टूटे हुए बदन पे ज्यों ढका गला लिवास सा था
जोश और जुनून में हम सबसे दूर हो गए यारो
याद आता है बहुत रिश्ता वो जो खास सा था
हसरते पूरी हों यही सोच के हम तेरे दर से उठे
दिल का मंजर मगर टूटी हुई एक आस सा था
जिंदगी हमसे ना रूठेगी और खफा नही होगी
जाने क्या सोच कर हमको ये विश्वास सा था
सूनी रातें भी ऐ शिशिर तेरी यहाँ हो सकती है
मुझे धुंधला सा इस बात का एहसास सा था
शिशिर मधुकर
बहुत खूब आदरणीय
हार्दिक आभार अभिषेक …………….
As usual very nice Shishir ji.
I value your words Meena ji……….
बहुत खुबसूरत गजल आदरणीय मधुकर जी। जीवन के हर रंग में सराबोर……… सच में गजल जीवन के एकदम नजदीक
आपसे एक बात आदर के साथ पूछना चाहूँगा, आप गजल किसी बज्न या बह्र पर करते है या तुकांत काफिया पर।
क्योकि आप की गजल इतनी उम्दा होती है पर मुझे उसमे किसी निश्चित बह्र का आभाव नजर आता है। या हो सकता हो ऐसा मेरा भ्रम हो। सर आप अगर बह्र पर गजल साधे तो आपकी गजल की कोई सानी नहीं।
सुरेंद्रजी….मेरा आपसे अनुरोध है “बहर” पे मैंने विचार पूछे थे ….आप जब वक़्त लगे अपने विचारों से अवगत करवाएंगे तो बहुत अच्छा लगेगा…
सुरेंद्र आपकी सराहना का हार्दिक आभार. जहाँ तक मेरे ग़ज़ल लिखने के असली आधार का प्रश्न है मेरा फोकस भाव, रदीफ़ काफिया, मतला व मकता पर रहता है. बहर या लय तो भावों की निरंतरता से स्वयं ही आ जाती है मैं इसे मात्राओं की संख्या या समानता में नहीं बांधता. बहुत अधिक बंधनो से भावों को कहने में मुश्किल आती है फिर भी भविष्य मे मैं प्रयास करूंगा.
वैसे सत्य यह है कि मुझे बहर क्या है इस बात कि कोई पूरी समझ नहीं है व इस विषय पर एक छोटे से सुझाव की मित्रों से अपेक्षा है
बहुत ही उम्दा……….
Thank you very much Babbu ji. I would also request you to lease elaborate on Bahar.
बहुत सुंदर गजल……………………………
वैसे तो मै आप सभी से ही रचना करना सिख रहा हूँ, पर मेरा मानना है की कुछ अच्छी बाते सिखने में हमें तत्पर रहना चाहिए।
बह्र लय मापने का पैरामीटर होता है । आप अपने भाव चाहे जैसे कहे, स्वतंत्र है पर अगर किसी विधा में कहना चाहते है तो आपको उस विधा को जानना होंगा। जैसे दोहा सभी रचनाये नहीं हो सकती जबतक उसमे 13-11 मात्रा का पालन न किया गया हो।
गजल भी एक कुछ निश्चित पैरामीटर पर लिखे और गाये जाते है। अगर उन पैरामीटर का हम पालन न करे तो बेहतरीन भाव सम्प्रेषण के बावजूद कही न कही गजल गाने में सुर में भटकाव या रूकाव आएगा। बह्र सामान्यतः हिंदी में लघु गुरु मात्रात्मक जैसा ही है, कुछेक जगह को छोड़ कर। गजल में अंत में मात्रा पतन का भी नियम चलता है जबकि हिंदी में नहीं।
उदाहरण के लिए आप मेरी वर्तमान की किसी गजल में लिए गए बह्र को देख सकते है।
कुछ उदहारण रखना चाहूँगा
एक मशहूर बह्र है
1222 1222 1222 1222
इस बह्र पर आप सभी ने कुछ गीत सुने होंगे जैसे
मुझे तेरी मुहब्बत का सहारा मिल गया होता
12 22 122 2 122 2 1222
किसी पत्थर की मूरत से मुहब्बत का इरादा है
12 22 1 2 22 2 122 2 1222
अगर आप इस बह्र पर नहीं लिख रहे है और लय मिला कर लिख रहे है तब भी लाख कोशिशो के बावजूद लय भंग होना लाजिमी है। इस लिए गजल बह्र पर लिखे तो आपकी गजले एक नायाब हीरा साबित होंगी।
गजल में इस समय 32 बह्र प्रचलित है। मै खुद सब नहीं जानता और एकदम बुद्धू हूँ। आप सब अगर सही सही जानना चाहे तो किसी जानकार से सीखे। मुझसे साहित्यिक विचार साझा करने हेतु मेरा whatsapp no
09532855181 पर मुझसे जुड़े। मिलकर सिखा जायेगा
आदरणीय शिशिर सर, किसी शब्द या प्रतिक्रिया से आपको दुःख पंहुचा हो तो मुझे माफ़ करेंगे। मै यहाँ आपसे बहुत कुछ सिखा और जाना है।
सुरेंद्र आपने बहुत सुन्दर तरीके से समझाया है. कुछ बात समझ में आई है लेकिन अब मुझे ये बताओ कि मात्रा देने का क्या आधार है. किसे एक व् किसे दो मात्रा देंगे .
मात्रा देने का आधार डिटेल में यहाँ बताना मुश्किल है
फिर भी कुछ बताता हूँ
अ 1 इ 1 उ 1
तथा आ 2 ई 2 ए और ऐ दोनों के 2
ओ तथा औ दोनों के 2 ऋ के 1
मध्य(21) जख्म(21) सत्य(21)
रूप(21)
कमल= क+मल(12)
अगर=अ+ गर(12)
तरफ= त+ रफ(12)
मुहब्बत (122)
इरादा (122)
ऐसे ही।
सर आपको एक सरल बात बताता हूँ। गजल में अगर बह्र नहीं देखना है और लय साधना है तो बह्र कुछ इस तरह बैठाई जा सकती है
जुल्फ घटा(21 12=222)
अर्थात 22 के समुच्चय में
उदहारण के लिए
[8/30, 9:13 PM] Ravi Shukla Ji: ज़ुल्फ़ घटा बनकर लहराए आँख कँवल हो जाए
शाइर तुमको पल भर सोचे और ग़ज़ल हो जाए
फैलुन् फैलुन् फैलुन् फैलुन् फैलुन् फैलुन् फैलुन्
22 22 22 22 22 22 22
आप की जितनी गजल है सभी थोड़ी सी मेहनत के बाद इस बह्र पर सेट हो सकती है। यह एक सर्वमान्य बह्र है। और आप तो साइंस के आदमी है, इसे समझने में आपको कोई दिक्कत भी नहीं होंगी।
यह मेरे गुरु का मुझको मेसेज था, आपको send किया ज्यो का त्यों
बहुत खूब शिशिर जी ………………!! ज्ञान जितना बाटा जा सके और जितना ग्रहण कर सके उतना ही बेहतर है …सुरेंद्र साहब ने ग़ज़ल के बारे में बहुत सटीक जानकारी साझा की सभी लिए उपयोगी है !!
वैसे परिवर्तन के इस दौर में आज ग़ज़ल भी अपने उर्दू बंधन से मुक्त होकर हिंदी और संस्कृत के भावो में ढल चुकी है … और नई विधा के जनक के रूप में उभर रही है !!!!
Thank you so very much Nivatiya ji
बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना, सर!!!
Thanks for your valuable words Dr. Swati