नासिका पर लौंग तारा
ये जो आपकी नासिका पर लौंग तारा है
सचमुच यह लगता बहुत प्यारा है
ये जो निश्छल निर्मल दो नयना है
आपकी सौम्यता को बढाता अनमोल गहना है
लबों पर जो दबी दबी सी मुस्कान है
यह आपके संयमित जीवन की पहचान है
सूरत आपकी देखकर निकलते हैं उदगार
दिखता सौन्दर्य आपका बिना कोई श्रृंगार
सादगी यह आपकी अन्तर्मन में बसी है
उदासी में हर्ष लाती आपकी निर्मल हंसी है
शब्दों को यूं तोलकर बोलते हैं
जैसे हृदय की वीणा के तार खोलते हैं
वाणी की न्यूनता से आपका मौन फलता है
भीतर कोई गहन विमर्श सा चलता है
अन्तर्मन में जैसे भावनाओं का ऊफान है
आनेवाला जैसे भावातिरेक का तूफान है
सागर में लहरों की तरह उठते हैं विचार
उसूलों के ताने बाने बुनता है संसार
विचारों की अतिशयोक्ति से ही बनता है सपना
स्वार्थी जगत की भीड में भी मिलता है कोई तो अपना
मिले आपको वो सब जो लगता आपको प्यारा है
सुखमय हो जीवन आपका यह शुभ सन्देश हमारा है
ये जो आपकी नासिका पर लौंग तारा है
सचमुच यह लगता बहुत प्यारा है
रामगोपाल सांखला ‘गोपी’
बेहतरीन प्रशंसा भरी बधाई
सर धन्यवाद
आपकी समसामयिक विषय पर चलती कलम पढनीय लेखन करती है ।
यूं ही लिखते रहें सरजी और अनुजों की हौंसला अफजाई करते रहें।
पुनश्च धन्यवाद ।
बहुत खूब…………………………
बेहतरीन………………..क्या शब्द पिरोया जनाब
आपने पढा और सराहा इसके लिए साधुवाद
बहुत खूबसूरत अलफ़ाज़…….
सर जी हौंसला अफजाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद