तुम मेरे फूल हो जिसको मैं बालों में सजाती हूँ
तेरी यादों के नगमों को मैं हरदम गुनगुनाती हूँ
तुम्हे दिल में बिठाकर मैं सोलह श्रॄंगार करती हूँ
मेरे देवता तुम जान लो मैं तुमसे प्यार करती हूँ
जब तुम संग होते हो मैं कोई चिंता न करती हूँ
तुम्हारी ही छवि हर सुबह मैं आँखो में भरती हूँ
तुम हरदम रहो मेरे खुदा यही दरकार करती हूँ
मेरे देवता तुम जान लो मैं तुमसे प्यार करती हूँ
तुम्हारे खून को मैंने निज रग रग में मिलाया है
तुम्हे पाकर ही तो मैंने यहाँ ममता को पाया है
मैं कुछ भी नहीँ तेरे बिन यही इकरार करती हूँ
मेरे देवता तुम जान लो मैं तुमसे प्यार करती हूँ
तुम्हे अगर ठेस लग जाएँ कलेजा मेरा दुखता है
इन आँखों का नीर फ़िर बहे बिना ना रुकता है
तुम कोई चोट ना खाओ दुआ हर बार करती हूँ
मेरे देवता तुम जान लो मैं तुमसे प्यार करती हूँ
शिशिर मधुकर
बहुत खूबसूरत प्यार भरी प्यारी रचना है आपकी शिशिरजी।
Hearty thanks Manjari ji for your appreciation
अति सुन्दर मधुकर जी। प्रेम रस से भरे शब्दो का बखूबी समावेश किया है श्रीमान आपने।
Hearty thanks Sheetalesh
सर कमाल है रचना…..प्यार के पवित्र भावों से रचित रचना को सलाम…………
Thank you Babbu ji
सर, तीज के सुअवसर पर पत्नी को भेंट करें. बेहतरीन रचना है और बेहतरीन उपहार भी होगा.
Thank you Vijay. I have already followed your advice
समर्पण के भावो से सजी सुन्दर प्रस्तुति ……………बहुत अच्छे शिशिर जी !
Hearty thanks Nivatiya ji
प्यार के भावो से श्रंगारी रचना आपकी….बेहतरीन सर
I appreciate your words Maninder
लाजवाब सृजन आदरणीय
So nice of you A higher for admiration
I like and a lot your feelings…really Shishir ji
Thank you so very much Sweta Ji for your admiration.
ये आपकी बहुत ही लाजवाब रचना है ……………..
मधुकर जी
Kajal ji I highly appreciate your words.