देख आ गया मेरे सिर का साई डोली लिए मेरी आज,
बाबुल लगा ले सीने से परायी हो चली बेटी तेरी आज,,
प्यारी सी नाजुक सी कली थी मैं तेरे घर के आंगन की,
कहे बोझ जग बेटी को, तुझे उस बोझ से कर दिया बरी आज,,
तेरी ऊँगली पकड़ ज़माने के साथ कदम मिला चलना सीखा,
ना मिलूंगी चौखट पर तेरा इंतज़ार करती छोड़ चली तेरी घरी आज,,
मुस्कराहट के पीछे छुपा ना अपने आँसू, छुपाये नहीं जायेंगे तुझसे,
तेरी दुआए, तेरे संस्कार, ले चली बाबुल तेरी प्यारी नन्ही परी आज,,
मेरी हर ख़ुशी पर अपनी हर चाहत लुटा दी, बिना कुछ सोचे समझे,
मैंने भी बेटी धर्म निभाया, खुश रहना मेरे बाबुल देख अपनी पगड़ी खरी आज,,
घरी……घर
भावुक कर देने वाले विदाई के पालो को खूब पिरोया है आपने ……..इस रचना को ग़ज़ल का रूप देने की अपेक्षा कविता या गीतिका में ढालते तो ज्यादा असरदार साबित होती !
निवातिया जी अपने बिलकुल ठीक कहा पर ग़ज़ल लिखने की चाह इतनी प्रबल हुई पड़ी है की पहले कविता ही लिख रहा था………….फिर सोचा गजल में लिखू………………….बहुत बहुत धन्यवाद आपको पसंद आयी………………..
मनी जी….भावुक कर दिया….निवतियां जी ने सही कहा है….और अंतिम पंक्ति में मनी जी…बेटी की तरफ से “मनी” कहना अजीब सा है…..नाम न होना ज्यादा उचित होता वह…या पापा होता…..
तहे दिल आभार सी एम् शर्मा जी बस आपका आशीर्वाद है……………………..
बहुत हीसुंदर मनी जी।
खुशी होती है मुझे ये देख कर कि बेटियों को चाहने वाले
भी है इस समाज में।
बेटी के लिए इतनी सारी रचना देख कर मन बहोत
खुश हो गया है।
धन्यवाद आपका।
काजल जी तहे दिल धन्यवाद आपका इस सराहना के लिए……………….मेरी भी एक बेटी है पौने चार साल की……….बहुत हँसाती है मुझे……………..
बहुत खूब……………गजल ही गजल………………
हाहाहाहा………………………सिखने की कोशिश मैं हु विजय जी गजल कैसे लिखे लिखते है……आप अपना प्यार बनाये रखे……………….
वाह्ह्ह्ह्। बहुत खूब मनी जी
बहुत बहुत आभार अभिषेक जी………………..
बहुत ही खूबसूरत दिल को छूने वाली रचना ………………………….. मनी !!
तहे दिल आभार सर्वजीत जी…………………..
सुन्दर रचना…….
thank you anand
Bahut hi bhavpurn aur sundar rachna????
thank you dr swati ji…………….
हार्दिक आभार आनंद ……….
here mani sir………………hahahaha