नींद की गोलीयों की आदी
हो चुकी बूढ़ी दादी गोली के
लिए जिद कर रही थी,
लेकिन पोते की नई ब्याह कर आई
डॉक्टर बहु उनको नींद की
गोली के साइड इफ़ेक्ट बता कर
गोली नहीं देने पर अड़ी हुई थी।
काफी देर प्यार मनुहार से बात
नहीं बनी तो दादी गुस्सा
दिखाकर नींद की गोली
प्राप्त करने का प्रयास कर रही
थी।
आखिरी हथियार के रूप में
दादी ने अपने बेटे विकास को
आवाज लगाईं।
विकास ने आते ही कहा
“अम्मा मुंह खोलो।”
बहु के मना करते करते भी उन्होंने
जेब से एक स्ट्रैप निकाल कर उसमे
से एक छोटी पीली गोली
दादी के मुंह में डाल दी।
पानी भी पिला दिया।
गोली लेते ही आशीर्वाद देती
हुई दादी नींद के आगोश में जाने
लगी।
बहु ने कहा की “पापा आपको
ऐसा नहीं करना चाहिए था”
बहु के ऐसा कहने पर विकास ने
स्ट्रैप बहु को दे दिया ।
नींद की गोली जैसा ही
विटामिन की गोली का
स्ट्रैप देखकर बहु के चेहरे पर
मुस्कुराहट तैर गई ।
और धीरे से बोली की
“पापा, आप माँ के साथ ही
चीटिंग करते हो!”
विकास ने मुस्कुराते हुए जवाब
दिया
“बहु, बचपन में इसने भी मुझे
चीटिंग कर कर के कई चीज़ें
खिलाई हैं।
अब बदला ले रहा हूँ।
ओह्ह्ह्ह्ह,मजा आ गया पढ़ कर! वाकई माँ माँ होती है!
लिखने का अंदाज पसंद आया!
बहुत खूब
आप की रचना एक सौम्य पारिवारिक पृष्ठभूमि का एहसास छिपाए है।
अति उत्तम ………………..
क्या बात है बहुत ही अनोखी रचना आपकी ।
dil ko chu gayi…………………bahut badiya sir
बहुत हीं सुंदर रचना………….
बहुत ही सुन्दर
बहुत ही सुंदर…………………………….ऐसे बदले अवश्य लीजिये जो उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करता हो.
आपसभी की प्रतिक्रिया पाकर मैं धन्य हुआ, ऐसे ही आपलोगों का आशीर्वाद मिलता रहे मुझे।
बहुत भुसूरत प्रस्तुति वेदप्रकाश ……जीवंत भावो का सजीव चित्रण !!
आपने बहुत सही लिखा है…..मैं अपनी माँ के साथ किसी दवा के लिए या डॉक्टर पास ले जाना हो तो अक्सर चीटिंग ऐसी करता था….. और माँ बाद में पता चलने पर प्यार से डांटती थी या बस अश्रु बहा देती थी….अपकी रचना से सब आँखों के सामने आ गया….
धन्य हुआ मैं आपका प्यार-आशीर्वाद पाकर।।।।