जरुरी अर्थज्ञान बिना जीवन की नहीं बनेगी बात,
पत्नी भी फिर निकल लेगी किसी पडोसी के साथ,
चार दिन की चांदनी और फिर रहेगी अँधेरी रात,
धन नहीं रहे तो उपवास, धन रहे तो पकेगा भात,
आमदनी अठन्नी और रुपये खर्च की जब हो बात,
कभी नहीं जीवन संवरेगा, बिगड़े ही रहेंगे हालात,
जब पैसे ना हों जेब में तो देख लो अपनी औकात,
रिश्ते, मित्र, पडोसी सबके ही मिट जाते जज्बात,
मुद्रा प्रचलन में लाना जीवन को था सुगम बनाना,
अब ये है लोमड़ी की चाल, ओढ़ ली नानी की शाल,
याद रखो कुछ बातें, जीवन में नहीं कभी भुलाना,
आमदनी को शत-प्रतिशत तो कभी भी नहीं गंवाना,
संचय की जो नीति बनाता, विपदा से खुद बच जाता,
बूँद-बूँद से लोटा भरता, वक्त पर वही प्यास बुझाता ।
विजय कुमार सिंह
vijaykumarsinghblog.wordpress.com
Note : ब्लॉग पर तस्वीर के साथ देखें.
saty kaha vijay ji aapne…….
मैं देखता हूँ कुछ लोग ऐसे होते हैं जो जितना भी कमाते हैं उससे जितना आनंद उठा सकें उठते हैं और भविष्य के लिए नहीं सोचते. आपने देखा होगा जान-धन योजना में कितने खाते खुले. अब भी बहुत लोग ऐसे हैं जो बचत के बारे में नहीं सोचते, जब भी कोई संकट आता है सबसे ज्यादा कीमत उन्हें ही चुकानी पड़ती है.
सच विजय जी “बिन पैसे सब सून” बहुत ही खूबसूरत रचना l
बहुत-बहुत धन्यवाद राजीव जी…………………….
अत्यंतमधुर्यपूर्ण विजय जी
बहुत-बहुत धन्यवाद अभिषेक जी…………………….
आजकल के परिपेक्ष में हास्य व्यंग के साथ आपने बहुत ही सटीक सन्देश दिया है….बहुत ही खूबसूरती से……
सराहना के लिए ह्रदय से आभार…………….
अर्थ ज्ञान के माधयम से जीवन की कला सीखने की अद्भुत सम्मति पेश की है आपने ……..बहुत अच्छे विजय !!
सराहना के लिए ह्रदय से आभार…………….
महत्वपूर्ण सलाह देती सुन्दर रचना विजय
पैसा है पास तो जग है साथ …………………………………. बहुत ही बढ़िया विजय जी !!
उपयोगी सलाह और कटु सत्य से भरपूर रचना , बहुत खूब ।
विजय जी आपने बहुत ही अर्थपूर्ण रचना लिखी है। सच है की अगर धन संचय की वास्तविकता से हम अनभिग्य है तो फिर कभी उसका खामियाजा भुगतना ही पड़ेगा!