सच है यारों शादी के बाद अपना राज चलाती बीबी
चाहो न चाहो सिर पर काटों का ताज सजाती बीबी
जो बनते हैं बब्बर शेर उनको बंदर सा नचाती बीबी
अकड़ दिखाने वालों को घुटनों के बल चलाती बीबी
आशिक मिजाज पति को झट सराफत सिखाती बीबी
पति मासुका साथ में मिले तो दंड बैठक करवाती बीबी
गर करे ना-नुकर सरेआम पति को राखी बधवाती बीबी
गोपियों के कृष्ण कन्हैया को सिया के राम बनाती बीबी
पति हो गर जोरू का गुलाम तो पाव दबवाती बीबी
यूँही फालतू डरने वालो से बर्तन भी मजवाती बीबी
पाक कला के शौक़ीन पति से खाना बनवाती बीबी
पत्नी करे नौकरी तो झाड़ू पोछा भी लगवाती बीबी
ऑफिस से आने में देर हुवा तो तांडव मचाती बीबी
तन पर औरों का बाल मिला तो मयियत लाती बीबी
सज धज के निकले तो सचमुच कयामत ढाती बीबी
रण चंडी बन जाये तो दिन में भी तारे दिखाती बीबी
साड़ी जेवर की फरमाईस सुनाती रोजाना बीबी
कभी सर्दी कभी बुखार का बनाती बहाना बीबी
बात-बात पर देती अपनी गरीबी का ताना बीबी
मायके में उसके जन्नत था ऐसी गाती गाना बीबी
मन में उठते हर सवाल का वाजिब जबाब है बीबी
पति के ना-जायज खर्च का रखती हिसाब है बीबी
करना चाहो अगर नशा, समझें देशी शराब है बीबी
चाहे कितनी हो नमकीन मत कहना ख़राब है बीबी
यह सच है हर किसी को यहाँ नहीं मिल पाती बीबी
बहुत भाग्यशाली जन है जिनको नहीं सताती बीबी
दिल तड़पता है जब नजरों से ओझल हो जाती बीबी
चाहे कुछ भी कह लें हम सब, अपनी ही भाती बीबी
कुशक्षत्रप की सलाह—–कुवारों के लिए
शादी से पहले जीभर उड़लो फिर मौका न पाओगे
हो हंस नील गगन के हमेशा के लिए भूल जाओगे
पर होंगे तेरे कतरे हुए, चाह कर भी न उड़ पाओगे
बीबी घूमेगी इधर उधर, तुम यूँही आँसू बहाओगे।।।
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सुरेन्द्र नाथ सिंह “कुशक्षत्रप”
बहुत बढ़िया सुरेन्द्र जी रचना…….पर सम्भाल के जरा……पड़ोस में नज़र कम रखे
धन्यवाद मनी जी, ख्याल रखूँगा।
हँसा हँसा कर मार ही डालोगे सुरेन्द्र जी बहुत ही अच्छे शब्दों का प्रयोग किया है आपने लाजवाब हास्य व्यंग l
राजीव जी धन्यवाद आपका…….. हसना भी जरूरी है।
लगता अंत के समय पड़ोसन पे नज़र पद गयी…जो नीचे नाम लिखना भूल गए….राजीवजी ने सही कहा….आज हंसा हंसा के मार डालोगे क्या…आज बीवी पे रचना का दिन है…लगता घर नहीं बीवी जो खुल के लिख रहे… हा हा हा…..मजा आ गया…लाजवाब…..
सर जी, मै बीबी के साथ नहीं रहता। इसलिए स्वछन्द हूँ। पर औरो को देखा तो लिख दिया।
आपकी रोचक प्रतिक्रिया के लिए आभार!
पहले तो आपने नेक सलाह दी, फिर आपने अपनी ही सलाह पर सबसे पहले खुद ही अमल कर दिया. बहुत खूब…………………….संभल के…………………….
विजय जी अति आभार आपका, प्रेम से प्रतिक्रिया देने के लिए।
बहुत खूब सुरेन्द्र……..आपकी क्षमता के मुताबिक़ हास्य और व्यंग की मात्रा और अपेक्षित है…आप इसको और अधिक रोचकता प्रदान कर सकते है !!
निवातियाँ जी अवश्य, मुझे भी कुछ कमी का आभास हो रहा है। एक बार पुनः कुछ संयोजित करने का प्रयास करूँगा। आपके बहुमूल्य सुझाव आगे भी आपेक्षित है।
निवातोयाँ सर मैंने यथा संभव इसमें संसोधन किया है। आप एक बार पुनरवलोकन करें तो मुझे अच्छा लगेगा।
आज मस्ती के माहौल में हास्य रस का प्रवाह हो रहा है ……………………………. बहुत ही बढ़िया सुरेन्द्र जी !!
धन्यवाद भाई सर्वजीत सिंह जी!
सुरेंद्र अधिकतर की पीड़ा को शब्द दे दिए आपने. बहुत मज़ेदार रचना.
शिशिर सर, आपके आशीर्वाद के लिए धन्यवाद!
बहुत बढिया सुरेंद्र जी , सच्ची घटनायों पर आधारित रचना है ।
रचना पढ़कर हमें लिखने के लिए कोटि कोटि धन्यवाद राजकुमार गुप्ता जी!