बधाई हो बधाई हो
आवाज़ मेरे कानो में पड़ी, देखा किन्नरों की ने आवाज़ लगाई,
हुआ तुझको बेटा लेने आये है उसकी तुझसे बधाई,
इक्कीस हजार से कम न लेंगे, पहले बता देते है तुझको,
मैंने देखा अपनी पत्नी की तरफ, उसके माथे पर चिंता की लकीरे छाई,
हम से इतना ना बन पड़ेगा, ग्यारा सौ से ज्यादा औकात नहीं मेरी,
फेंक के मारे किंनर ने, इक्कीस हज़ार से कम ना लेंगे बधाई,
मेरी माँ मुझसे बोली बेटा,इनकी बद्दुआओं में असर बहुत होता है,
जिसके मुंह पर हाथ फिर जाये उसकी तो बर्बादी निकट आई,
सारा घर छान मारा मैंने, जो था सब कुछ समेट लिया मैंने,
पर फिर भी ज्यादा कुछ ना बना, उनके आगे रख दी पाई पाई,
देखो तुम्हारा वो हाल करेंगे तुम उम्र भर याद रखोगे,
नंगा नाच करेंगे तेरे आगे, गंदे गंदे लफ्ज़ो की आवाज़ आई,
जल्दी से कान की बलिया उतार कर दे दी, मेरी श्रीमती ने,
हलकी देख फिर से फेंक कर मारी और किन्नरों की फ़ौज अंदर आई,
लगा ऐसा बधाई नहीं वसूली मांग रहे हो, कुछ कहा बुरा ना हो जाये,
कही शाप दे ना जाये, मेरी परिवार वालो के माथे पे चिंता छाई,
शौर बढ़ता ही जा रहा था, अजीब अजीब से अलफ़ाज़ हर तरफ,
मेरी माँ एक चैन जो पुरखो की निशानी झट से निकाल लायी,
अब ना खाने को था, ना बच्चे की दवा दारु को कुछ,
जो कुछ था सब कुछ समेट के ले गए वो, सोचता मैँ ये कैसी दे गए बधाई ?,
एक अंधविस्वास, या कुछ और कहु, दे गए दर्द और भूख,
हुआ बेटा मेरे घर, लेने किंनर आए थे मुझसे बधाई |
बधाई हो बधाई हो……
ये आज कल के समाज की कड़वी सच्चाई है मणि जी कोई किसी को समझने वाला नहीं मांगने वालो की मांग खत्म नहीं होते और मिडिल क्लास फैमिली वाले दे दे के खत्म हो जाते है…बहुत सही मुद्दे पे आपने लिखा है ..
पहले तो शुक्रिया इस सराहना के लिए….सही कहा आपने अमर जी आज हर कोई बैठे बैठे खाना चाहता है इसमें सबसे बड़ा गलत निर्णय हमारी अंध्विश्वास से भरी सोच का है इससे बदलना होगा |
कटु सत्य …………….
शुक्रिया शिशिर जी ……
वआह….मनी जी…वाह….बहुत बहुत बधाई…इस रचना के विषय की….
बहुत बहुत शुक्रिया सी एम शर्मा जी………….
सच्चाई को पेश करती खूबसूरत रचना मुबारक हो मनी जी l
बहुत बहुत शुक्रिया राजीव जी…..
अति सुन्दर रचना मनी जी
बहुत बहुत शुक्रिया अभिषेक जी…..
समाज की विभ्रान्तियों पर ध्यान ले जाने के लिए आभार!
हमारे अंधविश्वास ही हमारी मुश्किल और कुछ लोगों की आय बढ़ाते हैं।
अभी बहुत समय लगेगा इनसे उबरने में।
अच्छी रचना पर बधाई स्वीकार करेंकरें!
…..बधाई हो बधाई हो…..
अरुण जी तहे दिल से शुक्रिया आपका अपने मेरे विषयों को सराहा, सही कहा आपने अभी कुछ समय लगेगा पर कोशिश अभी से करनी होगी |
यथार्थ से परिपूर्ण रचना ….वास्तविकता यही है की आसमानो को छूने वाबजूद भी हम समाज में फैली कुरीतियों से उबरने में असमर्थ है !!
शुक्रिया निवातियाँ जी तहे दिल से आपका,
चाहे किन्नर हों या आम इंसान यहां तो मौका चाहिए बस लूटने का, बहुत बढ़िया …………………………….. मनी !!
सर्वजीत जी तहे दिल से शुक्रिया आपने मेरी रचना को सराहा
कड़वी सच्चाई है मणि जी लेकिन आप किन्नरों के प्रति कठोर न हों उनके पास कमाई का और कोई साधन नहीं है और समाज द्वारा भी तिरष्कृत हैं और सारे किन्नर ऐसे नहीं होते जैसे सभी उंगलिया बराबर नहीं होतीं.
विजय जी में किन्नरों की लिए कठोर नहीं पर ये वास्विकता है की वो कैसे फ़ायदा उठा रहे है | मैंने देने की लिए कभी मना नहीं किया पर जितनी आप की हैसियत है दे पर किसी से अगर किंनर खो ले तो | कुछ दिन पहले मेरे किसी करीबी की यहाँ की घटना है जिसे मैंने रचना की माधयम से आप की सामने रखी है | एक हमारा समाज उन्हें काम ही नहीं करने देता जिसके करके यह हालत बन कर हमारे सामने खड़े हो रहे है
मनी जी मैंने पहले ही कहा आपकी बातें कटु सत्य हैं. आपने जो भी लिखा वो भी सत्य है. आपके साथ जो भी उन्होंने किया वो नहीं होना चाहिए था लेकिन मैं सिर्फ ये कहना चाहता हूँ की सभी किन्नर एक जैसे नहीं होते.
बहुत अच्छा… ………….
thanks chandramohan ji