कोहरे के बादल,कड़ाके की ठण्ड हो तो
सूरज की नरम धूप,अच्छी लगती है।
भारी-भरकम भीड़,अनर्गल शोर हो तो
खामोशी की चादर,अच्छी लगती है।।
लीक पर दौड़,बेमतलब की होड़ हो तो
कुछ हट कर करने की सोच, अच्छी लगती है।
भावों का गुब्बार,अभिव्यक्ति का अभाव हो तो
नयनों की मूक भाषा,अच्छी लगती है।।
‘मीना भारद्वाज’
nice lines …… meena ji
Thanks , Manindraji
बेहतरीन रचना………………..
हौंसलाअफजाई के लिए आभार शिशिर जी !
बेहतरीन रचना मैम……..
रचना सराहना के लिए शुक्रिया अलका जी !
बहुत ही बढ़िया………
हार्दिक आभार अभिषेक जी !
बहुत खूबसूरत मीना जी …….कई दिनों बाद आपकी रचना नजर हुई !
सराहना के लिए आभार निवातियाँ जी ! ग्रीष्म कालीन अवकाश के कारण व्यस्तता अधिक रही ।
आपकी बात अच्छी लगती है……
बहुत अच्छे और विशुद्ध भावों का संकलन।
बहुत खूब….
धन्यवाद अरुण जी !
मीना जी बहुत बढ़िया लिखा है आपने ।
धन्यवाद काजल जी !
NICE …………………………………!!
Thanks………, Anuj ji
मीनाजी….कुछ गुणीजन यहाँ ऐसे हैं…उनमें से एक आप हैं…जिनकी रचना मैं बार बार पढता हूँ….ताकि मैं कुछ सीख सकूं……आप के भाव और आपके शब्दों में ठहराव का मेल बहुत ही बेजोड़ है…..लगता आपकी कलम के लिए हों जैसे….कभी कभी इर्षा होती है….हा हा हा…..हर तरह से लाजवाब…..
आप के उत्साहवर्धन की शैली आपकी विनम्रता और दूसरों को प्रोत्साहित करने की भावना दर्शाती है शर्मा जी! रचना सराहना के लिए हार्दिक आभार !
मीना जी आपकी रचना लाजवाब है किन्तु ये लाइन्स दिल को छूती है “भावों का गुब्बार,अभिव्यक्ति का अभाव हो तो नयनों की मूक भाषा,अच्छी लगती है।।”
राजीव जी रचना पढ़ने और सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद !
आपकी रचना भी प्रसंसनीय है. एक बार “सैनिक” भी पढ़ें और अपने विचार दें.
हार्दिक आभार विजय जी !आपकी सैनिक रचना ओजपूर्ण भावनाओं से युक्त सुन्दर रचना है ।