देखो न
तुम्हारी यादों की नशा
कुछ इस कदर चढ़ा मुझपर कि,
देखते ही देखते सुबह हो गई
खिड़की के बाहर देखते ही
उजाला नजर आने लगा
धीरे-धीरे अंधेरा मिटाने लगा
और जीवन मुस्कुराने लगी
अब तुम ही बताओ, मैं क्या करू
तुम्हारी यादों की नशा
कुछ इस कदर छड़ा मुझपे कि,
देखते ही देखते सुबह हो गई
तुम सो रही हो अबतक, और
मैं जाग रहा हूँ अब तक
संदीप कुमार सिंह
अति सुन्दर ……!
धन्यवाद निवतियाँ जी ……
अति उत्तम …………………
धन्यवाद मनोज जी …..