*प्रभात बेला*
अरुणोदय के अभिनन्दन में
खगकुल गाते गीत सुहाने
शैल शिखर हो रहे सुशोभित
चुनरी ओढ़ी लाल, धरा ने ||
हुआ तेज जब अरुणोदय का
निशा सशंकित लगी भागने
हँसता पूरब देख चंद्र को
पल्लव सभी लगे मुस्काने ||
पंकज आतुर खिलने को अब
देख कुमुदिनी तब मुरझाई |
अलिदल दौड़ पड़े फूलो पर
कीट पंख में हलचल आई ||
मलय समीर की मन्द बयार
मदहोश कर रही अधरों को |
रवि की नव किरणों को पाकर,
शीतलता मिलती नजरो को ||
स्वागत करती है वसुंधरा
नव बेला का बाहें पसार |
दिनकर भी प्रमुदित मिलन हेतु
स्वर्ण रश्मियों पर हो सवार ||
मनुज उठो, देखो नव विहान
संचार करो फिर यौवन का|
काल चक्र के साथ चलो तुम
क्यों व्यर्थ करें पल जीवन का ||
सुरेन्द्र नाथ सिंह ‘कुशक्षत्रप
अगर मेरी रचना में आप कोई सुधार कराये, तो मै अति आभारी रहूँगा……..
अति उत्तम वर्णन………………
दिल की गहरयियो से आभार मधुकर sir, कुछ याचना किया हूँ उन्हें भी देख लीजिये।।
सुरिंदरजी….लाजवाब….अत्यन्त सुन्दर….मुझ में ज्ञान नहीं है…कुछ भी…हाँ मैं गुनगुनाता हूँ तो शब्द आगे पीछे नज़र आते जैसे….”मलय समीर की मंद बयार…मदहोश कर रही अधरों को” “स्वर्ण रश्मियों पर आरोहण कर …उदित हो रहे भगवान भास्कर” “जगाओं नव यौवन का संचार”…..क्या यह ऐसे हो सकता है….जो मैं नीचे लिख रहा…पर यकीं करो मुझे सिर्फ गुनगुनाने में लगा…कमी नहीं है यह ना ही मुझे सच में पता कुछ …गुस्ताखी की मैं पहले माफ़ी मांग लूँ…
“मलय समीर की मंद बयार…कर रही मदहोश अधरों को” “स्वर्ण रश्मियों पर कर आरोहण …उदित हो रहे भगवान भास्कर” या स्वर्ण रश्मियों पर आरोहण …उदित हो रहे भगवान भास्कर”…. “हो रहा नव यौवन संचार”
बब्बू जी, पहले तो माफ़ी मांग कर मुझे शर्मिंदा न करें, आप हक के साथ मुझसे आपनी बात कहे।।यकीन मानिये मुझे दुगुनी खुसी हो रही है की आपने इतना गहराई से कविता को देखा।।कभी कभी मै ऐसे ही गुनगुनाता हूँ और लिपिबद्ध करता हूँ पर कतिपय शब्दों के आगे पीछे बैठाने में चूक हो जाती है।।
लाजवाब*******************************************
बब्बू जी आपको तहे दिल से आभार देता हूँ की आपने मेरी रचना के कलात्मक पहलू को देखने के लिए समय निकाला। मै शिशिर जी और निवातियाँ जी से भी याचना कर रहा हूँ वह भी इस बाबत कुछ कहें.
अभी मै कार्य-स्थल पर हूँ, लौट कर जो भी उचित लगेगा परिवर्तन करूँगा।।
मेरे हिसाब से तुम्हारे शब्दों का क्रम पूर्णतया ठीक है.
धन्यवाद मधुकर जी…..
शाब्दिक एव तार्किक रूप से रचना लयबद्ध है……… खूबसूरत शब्दों के प्रयोग ने रचना को प्रभाशाली बना दिया है !!
कहने के तरीके भिन्न हो सकते है …… इस मत में कोई दोराय नहीं !!
धन्यवाद निवातियाँ जी, आप इसी तरह उत्साहवर्धन करते रहें, मै कोटि कोटि आभार व्यक्त करता हूँ।।।।।
अति सुन्दर …,बहुत सुन्दर शब्दावली का प्रयोग करते हुए प्रभात वेला का वर्णन किया है !
Meena Bhardwaj ji, आपकों रचना पढने और प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार!
सुप्रभात के अभिनन्दन में बहुत कुछ कह डाला ……………………. एक चमकती सुबह की तरह सुन्दर रचना ……………….. बहुत बढ़िया सुरेन्द्र जी !!
सर्वजीत सिंह जी, कैसे आपका आभार दू, मेरे पास शब्द नहीं, बस यही कहूँगा की आपके पास जो बेहतरीन शब्द हो, उसी को मेरा शब्द समझिये…….
बहुत सुंदर शब्द ही नही बयाँ करने को अति उत्तम
कभी बचपन में प्रभात वर्णन पढ़ा था। तब कुछ गहरे चित्र नहीं उकेर पाया और भूल गया। आज इस रचना को पढ़ कर उन अधूरे चित्रों में फिर से कुछ नये रंग भर उठे। मैं कुशक्षत्रप जी का आभार व्यक्त करता हूँ।