प्रेमी –
शायद मेरे शब्द तुम्हे लुभा न सके,
मेरी ये दीवानगी, दीवाना तुम्हे बना न सके,
फुर्सत मिले तो जरुर पढना इन खतो को,
कही देर कर दी तुमने तो ऐसा न हो ,
तुम्हारे ही गम तुम्हे अपना न सके । ।
प्रेमिका –
तुम्हारी इस दीवानानगी ने खूब दीवाना बनाया मुझे ,
तुम्हारे खतो के तीरो ने खुब रुलाया मुझे,
अगर मै मर भी गयी तो अब गम न होगा,
तुम्हे दे कर जिदंगी ने,
बड़े अपनेपन से अपनाया मुझे । ।
काजल सोनी
वाह क्या बात है, प्रेम की सजीवता का खुबसुरत भाव, अपने प्रेम में ही सर्वस्य हो जाने की तड़प….अच्छी रचना।।।।।।
बहुत बहुत धन्यवाद आपका सुरेंद्र जी ।
बहुत खूबसुरत ।।
तारीफ के लिए धन्यवाद । कुछ कमिया है मेरी रचना मे जिसे सुधारने की कोशिश है मेरी, आप सब के सुझाव का इंतजार रहेगा ।
धन्यवाद
marvellous. you seem to be master of this kind of poetry.
मधुकर जी आपका तहे दिल से शुक्रिया
बहुत ही सुन्दर….कमी यही है की आप हम को नहीं बताती की इतने सुन्दर भावों को कैसे लेखनी में पिरोया जाए….
मेरी कोशिश तो ये है कि मुझे आप सब से ही सिखाने को मिले। धन्यवाद आपका
Kajalsoniji…..just numerous touch tha…waise ham sab har kisi se Seeng rahe hai…har a as paas ki cheez hamein kuch na kuch sikhaati hi hai…haan aapki likhne ki shaili Sach mein bahut achi hai.
आभार आपका शर्मा जी ।
Humerous . mobile se likha gadbad ho gayee
कोई बात नहीं शर्मा जी ।
आपके विचार पहली बार पढ़े …बहुत खूबसूरत और गहरे
धन्यवाद स्वाति जी आपका