जीवन
बेरूखी आंधियों में
वक्त के थपेड़ों ने
मुझे ये सिखाया है ।
आंखें मलते हुए चलते
छोटी-छोटी ठोकरों ने
मुझे इंसान बनाया है ।
जीवन में खतरे की घंटी
न जाने किस ओर बजे
बाढ आए बह निकले
तुफां आएं ये उड़ चले
ले जाक र धकेल दे
किसी गहरे नदी नाले मे
उसमें रहने वाली रेत में
कि सी जगह पड़ी सीप ने
मुझे ये सिखाया है ।
आंखें मलते हुए चलते
छोटी-छोटी ठोकरों ने
मुझे इंसान बनाया है ।
मोड़ बहुत से आए
हर मोड़ एक जैसा था
कहीं संभला कहीं गिर पड़ा
मुझे हवा ने उठाया
मोड़ पर पड़े गड्ढों ने
छोटे मोटे पत्थरों ने
पांव के इन छालों ने
भाले जैसे कांटों ने
मुझे ये सिखाया है ।
आंखें मलते हुए चलते
छोटी-छोटी ठोकरों ने
मुझे इंसान बनाया है ।
इंसान ठोकरों से…मुसीबतों से बहुत कुछ सीखता है….अति उत्तम रचना…
और फिर जो सीख ना सके, सिखा ना सके,…वो भी क्या जीवन है!
सुन्दर प्रयास
किसी ने खूब कहा था, ठोकर लगना बुरा नहीं होता,
परेशानी का भी अपना एक सन्देश होता है,
तूफानों में ही जिन्दगी जंग लड़ना सीखती है।।
बहुत खूब….