डायरी मेरी पुरानी
रखी थी कहीं बेगानी
अचानक पड़ गई नजर
और खुल गई बातें रूहानी।
कहा पीले पन्नों ने,
बंद -बंद दबे लम्हों ने,
तू तो बढ़ती चली गई आगे,
हम तो यहीं थे अटके
तेरे वास्ते ।।
कहा कुछ अधूरे शब्दों ने,
हमें भी अब बाँध दो तुम,
जिन्दगी की सलवटों में ।
जाने कब से
पड़े हैं अधूरे,
बहुत जी लिये
थोड़े-थोड़े।।
कुछ सूखी पत्तियां गुलाब की
जो खोकर अपनी खुशबू
चिपकी थी पन्नों से,
देख मुझे इठलाई,
होठों पर मेरे
खोई एहसास तैर आई,
एक पल को मैं,
यथार्थ से निकल
भ्रम में थी उलझाई।
पलटते-पलटते पन्नों को
अचानक एक सिसकी बँध आई,
अपनी दादी के लाड-प्यार,
जब अपने हीं शब्दों में मैं पाई।।
उनके अस्तित्व,
उनके स्पर्श को
खोया पाकर,
मैं पुन: छटपटाई,
आँखें मेरी वियोग में
छलक-छलक बरस आई।
पाकर अपनी डायरी पुरानी,
फिर से जी ली मैनें
अपनी दबी अधूरी कहानी ।।
जी लिया मैंने,
हर बीती आहट को,
खोई बातों की सरसराहट को ।
पीड़ा में लिपटी
हर आहत को,
सुकून में डूबी
हर राहत को,
पुराने पन्नों की
तहों में छिपे,
मेरे हर पलो को ,
हर छनों को,
पुरानी खुशबू में लिपटी
मेरी हर प्रातः
और हर रात को ।।
अलका
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति……..
बहुत धन्यवाद………..
प्रियंका अतीत को बहुत खूबसूरती से याद किया है आपने.
बहुत -बहुत धन्यवाद सर………
बीते हुए लम्हें कसक भरे ही क्यूँ न हों….कुछ अजीब सा सुकून फिर भी देते हैं….बहुत खूब अल्काजी…सुन्दर…
आपका बहुत -बहुत धन्यवाद………..
बहुत खूबसूरत प्रियंका ……….मुझे याद आ रहा है की यह कृति आपने पहले भी पोस्ट की थी शायद !!.
प्रतिक्रिया के लिए बहुत -बहुत धन्यवाद सर।इन्हीं भावनाओं को उजागर करती मेरी रचना “खो दिया है मैंने ” मैंने पहले पोस्ट की थी ।
खूबसूरत रचना ……
आपका धन्यवाद……….
वास्तव में आपकी कविता ने सजीवता सा अहसास कराया। एकदम सटीक और सुन्दर अभिब्यक्ति