तेरे मन कि तेरे मन मे,
मेरे मन कि मेरे मन मे,
कैसे कहे मन कि वयथा
दोनो रहते उलझन मे ।।
फ़ासलो के रथ पर बैठ
मंजिले कब हासिल होती
कूप के किनारे पर बैठ
प्यास कब ख़त्म होती ।।
कुछ बंदिशो को तुम तोडो
कुछ दूरियाे को हम मिटाये
लगाकर पंख अरमानो के
प्रेम गगन मे हम उड जाये ।।
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डी. के. निवातियाँ _______@
बहुत खूबसूरत रचना सर……
धन्यवाद प्रियंका ……………!!
Beautifully expressed feelings………..
Heartfelt gratitude……Shishir Ji.
उलझनों को सुलझा कर प्रेम गगन में उड़ने की चाह …………… बहुत खूब निवातियाँ जी !!
Thank you very much for your energetic comments… Sarvjeet ji
बहुत खूबसूरत……………….
Thank you very much Manoj ji
सुन्दर रचना निवातियाँ जी !!
Thanks a lot Meena ji
beautifully expressed….nivatiyaa jee!!!
Thank you very much Archana ji
अतीव सुंदर रचना।।। फासलों के रथ पर बैठबैठ मंजिले कब हासिल होती।।। कूप के किनारे बैठ, प्यास कब ख़त्म होती।। इन पक्तिओं से जीवन का सार कह दिया आपने।। सिर झुकता हूँ आपकी रचनात्मकता पर।।
सुरेंद्र जी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद …….आपके इस प्रेम और सम्मान का सदैव आभारी !!
आपसी दूरियों को ख़त्म/मिटाने का संदेश देती खूबसूरत रचना !!!
धन्यवाद अनुज ………..!!
बहुत सही कहा आपने….हर समस्या का समाधान है…हम चाहें तो….बहुत खूब निवातियाँ जी. ….. फासले कितने लम्बे भी क्यूँ न हों…मंज़िल मिल ही जाती है…शर्त यह के अहसास को ज़िंदा रखें….
यथोचित बब्बू जी ……..आपका कथन सत्य है ………..बहुत बहुत आभार आपका !!