वक्त वहीं है आज भी ठहरा हुआ,
जहाँ तुम कभी मुझको छोड़ आए थे,
तोड़ कसमों वादों की हर डोर को,
बंदिशें जैसे सारी तुम तोड़ आए थे,
रोकते भी अगर तुमको तो किस हक से हम,
तुम रस्मों-रिवाजों की चादर जो ओढ आए थे,
मिलते भी हम खुद से तो कैसा मगर,
खुद को दिल की जो गलियों में भुल आए थे,
संभलते भी जो हम तो किसके लिए,
गिरने के मायने जो निकल आए थे,
कहते थे ना छोड़ेंगे साथ उम्र भर,
पर तेरी खातिर तुझी को जो छोड़ आए थे।
सुन्दर भावो से गढ़ी खूबसूरत रचना ……!
ऋतुराज रचना तो अच्छी है मगर एक जो जगह शब्दों की अधिकता या कमी है. कृपया पुनः अवलोकन करें .