ऐसे ही आ जाया करो तुम, मेरे पहलू में शाम बनकर !
समेट कर रख लिया करू, रोज़ अँधेरी रात की तरह !!
नजरो को गवारा नहीं मिलना, गुफ्तगू भी जरुरी है !
कानो में घुल जाया करो, किसी रसीली बात की तरह !!
कभी तो भरोसा जताया करो, हमे अपना समझकर
यूँ अच्छा नहीं छुड़ाना, हाथ गैर के हाथ की तरह !!
दिल जो चाहता है वो कब मिल पाता है किसी को !
तुम बरस जाया करो बे मौसम बरसात की तरह !!
अब तो चेहरे पे शिकन तमाम नजर आते “धर्म” के !
इनको छिपा दो अपनी मुस्कान से, नकाब की तरह !!
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डी. के . निवातियाँ ___@
क्या खूब उतारा है प्यार में चाहत की गहराई को अनूठे शिकवे के अंदाज़ में…वाह…बहुत ही खूब ..
आपके तारीफ-ऐ-अंदाज की बात ही कुछ और है जनाब …..बहुत बहुत धन्यवाद बाबू सी एम जी !!
निवातियाँ जी किसी की चाह का दर्द समेटे खूबसूरत रचना.
SHISHIR JI, आपकी उत्कृष्ट प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद & हार्दिक आभार !!
शिकवा शिकायत और शिकन….इन सब को दूर करने के लिए इक मोहब्बत भरी मुस्कान —– बहुत खूब निवातियाँ जी !
SARVJEET JI. आपकी उत्कृष्ट प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद & हार्दिक आभार !!
VERY NICE…………………
Thanks for your comment Manoj Ji.
खूबसूरत गज़ल !!!
Thanks for your comment Meena ji.
तुम बरस जाया करो बे मौसम बरसात की तरह।।।।
वाह क्या शब्द चयन किया है आपने सर।।
दिल की गहराई में पहुचती गजल
रचना पसंद करने और मूलयवान प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद सुरेन्द्र !!
बहुत सुंदर गजल………..
बहुत बहुत धन्यवाद …….योगेश कुमार’पवित्रम !!
बहुत मिठास है हर पंक्ति में
बहुत शुभकामनाएं
बहुत बहुत धन्यवाद अरुण जी !!