शाम की शीतल हवा मन को मेरे भाती तो है ।
कोयल कू – कू ही करे कहने को वो गाती तो है ।।
मोह माया के भंवर से खुद को बचा लो दोस्तों ।
यह शांत मन मे वेदना के बीज बो जाती तो है ।।
उसकी मृदुल वाणी सुनकर धूप शीतल हो गयी ।
पास मेरे प्यार की अनमोल यह थाती तो है ।।
मन मेरा है बावरा बेचैन उसको ढूँढता ।
सहज मनमोहक छवि उसकी मुझे भाती तो है ।।
मै उसके एक इशारे पर ही अपनी जान दे दूँगा ।
वो खुले दिल से राज अपने मुझको बतलाती तो है ।।
गर जीते जी उसने वफा नहीं किया तो क्या हुआ ।
अब मेरे मजार पर हर रोज वो आती तो है ।।
मुझसे उसे भी इश्क था अब ये नुमाया हो गया ।
अब सच्चे मन से प्रेयसी का फर्ज निभाती तो है ।।
राज कुमार गुप्ता – “राज“
बेहतरीन रचना राज जी
धन्यवाद सर जी ।
मरने के बाद आई भी तो क्या आई|
यही तो मुहब्बत है सर ।
प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद ।
अति सुन्दर राजकुमार जी !!
धन्यवाद निवातिया जी ।