दुँअाए तु लेता चल , मत कर काम बुरा ,
सोच मत ! करके देख मिलेगा सुख बहुत बड़ा ,
अबतक किया जो तुने काम बुरा , पाया क्या संतोष?
कुछ काम अच्छा करके तो देख , अपने आप को एक बार तो कोष!
मानव जनम पाके तुने क्या ख़ाक है कमाया,
ब्यर्थ ही अपने जीवन को इन कामों मे यु ही गँवाया ,
एक ही जनम मिलता हमें कर इस जीवन को सफल ,
पापों के प्रायश्चित करके ही मिलेगा पुण्य का फल।
मन मे अगर ठान ले कोई काम नहीं असंभव,
संभव तभी हो जाएगा शुरु करेगा जब,
बुरे कामों का बुरा नतीजा जाने है सारा संसार,
अब भी समय बाक़ी है आँखें अपनी खोल,
अपनाकर भलाई का रास्ता जान ले जीवन का मोल,
मिटा दे अपने कामों से बुराई की वह सारी चीख़ ,
अपनी तरफ़ से देता हुँ अच्छाई की यह सीख।।
सम्पा प्रेरणापूर्ण रचना है
अच्छी कविता है। प्रेरित करने के लिए सारे शब्द मौज़ूद है
बेहद बेहद धन्यवाद शिशिर जी और सारांश जी ।
बहुत ही खूबसूरत रचना ..सम्पा जी ….
बहुत बहुत शुक्रिया शुक्लाजी । आप सबकी शुभकामनाएँ ही है जो मुझे लिखने कि हिम्मत देती है , इसके लिए मैं सभी को धन्यवाद देती हु। एैसे हि साथ दीजिएगा । कुशलता से रहिएगा ।
प्रतिक्रिया के लिए साधुवाद सम्पा जी…आपका प्रयास वाकई प्रशंसनीय है ..