हँस रहा है हमपर आज दुश्मन देश भी,
औकात नहीं थी जिसकी हमपर ऊँगली तक उठाने की,
आज हमने ही मौका दे दिया है उनको
अपनी मानसिकता पर ठहाके लगाने की!!
पार कर दी है हमने अपनी सारी हदें मूर्खता की
कभी हम पीछे पड़े थे आतंकवाद की डोर को जड़ से काटने में,
आज हम आरक्षण के आधार पर लगे है अपने देश को ही बांटने में!!
वाह! रे भारतीय इंसान क्या यही थी देशभक्ति,
भगत सिंह , आजाद और कलाम भी रो रहे होंगे हमारी इस गन्दी मानसिकता पर,
उन्हें भी बहुत पछतावा होगा अपनी दी हुई कुर्बानी पर !!
एक तरफ करते हैं बात देश को विकास की उँचाई पर पहुँचाने की
और दूसरी ओर चाह रख रहे हैं आरक्षण के श्रेणी में आने की !!
अरे मुर्ख इंसान कभी उनसे भी मिल कर देख
जो शिक्षा में आरक्षण के कारण असफल हो जाते हैं
जो मेहनत कर रात-दिन को एक करने में जुटे रहते हैं
और सामान्य श्रेणी में होने के कारण सफलता से एक कदम पीछे रह जाते हैं!!!
कभी सोचा है क्या बीतती होगी उनके दिल पर !!
बिन मेहनत किये बाजी कोई और मार जाता हैं
और मेहनत करने वाला अपने हाथ में असफलता का परिणाम पकड़ता है..!!!
लड़ना ही है तो बुद्धि और विवेक के आरक्षण में लड़ो,
मात देना ही है प्रतिभा की लड़ाई में दो …
जाति-धर्म के आधार पर क्यों??
क्या कर लोगे इस तुक्ष्य मानसिकता से….
तुम आरक्षण ही लेकर क्या कर लोगे
जब तुम अपने देश को ही खोखला कर दोगे….
अरे !आँख वाले अन्धे इंसान आँख खोलकर देख
इस गृह -लड़ाई में देश का विकास मिटटी में मिल रहा है
जब देश में एकता और शान्ति ही नहीं रहेगी तो
कहाँ उपयोग करोगे इस आरक्षण का ?
Wow v nice sir g kya khoob likha hai
thanku vijay ji
आरक्षण पर सुन्दर और सटीक रचना की है आपने ..पर जहा तक मै समझता हु आरक्षण को अब खत्म कर दिया जाय या फिर आरक्षण के लिए एक नयी रुपरेखा तैयार की जनि चाहिए जिससे की जो लोग वास्तव में इसके योग्य है वे ही इससे लाभान्वित हो अन्यथा आजकल आरक्षण काम ढोंग ज्यादे रह गया है ..
जी बिलकुल सहमत हूँ आपकी बात से ..
लेकिन काश ऐसा हो पाता….
अंकिता आपने बहुत सुन्दर और सत्य लिखा है. गोरे अंग्रेज़ों ने तो केवल हम भारतीयों को धर्म के आधार पर बाँटा था लेकिन हमारे अपने काले अंग्रेज़ों ने तो हमें जाति जाति में बाँट कर वह स्थिति उत्पन्न कर दी है जिसका कोई निदान नहीं है. जाति वैमनस्य के कारण ही आज हमारा समाज hypocrite हो चुका है व अंततोगत्वा जाति आधारित गृह युद्ध हमारे देश की नियति बन चुकी है. यह तो एड्स की तरह कभी ना ठीक होने वाला रोग है. इसी समस्या पर आप मेरी एक व्यंग रचना “मिलकर गाल बजाए” भी पढ़े और अपनी प्रतिक्रिया अवश्य भेंजे.
धन्यवाद सर…..
हाँ जरूर पढूंगी आपकी रचना…..
बहुत खूबसूरत अंकिता ! … आरक्षण का मूल उस कुटिल मानसिकता से जन्मा है जिसने समाज में जाति वर्ण को बढ़ावा दिया ! आज २१ वि सदी के अति शिक्षित परिवेश में भी ऊँच नीच का भेदभाव जस का तस है ! यदि इस घ्रणित मानसिकता से निकला जाए तो शायद समाज को किसी आरक्षण जैसी बीमारी से जूझना ही न पड़े !!
गन्दी मानसिकता ने ही सबको बर्बाद कर रखा है और समाज तबाह हो रहा है …