आकर किसी की जिंदगी से, जब कोई लौट जाता है
रूठ जाती है जिंदगी जैसे किसी का खुदा रूठ जाता है
दे जाता है जख्म यादो के, जिनका कोई इलाज़ नही
नासूर बन कर यादो का, ताउम्र दिल को तड़पाता है !!
फिर ना सुकून मिलता है, न दिल को करार आता है
भूलकर सब कुछ जिस्म, ज़िंदा लाश बन रह जाता !!
रह जाती है हृदय पटल पर एक अमिट छाप,
लाख मिटाओ निशान, फिर कहाँ मिट पाता है !!
सूनी लगने लगती है हर एक रंगीन महफ़िल
फिजाओ में भी फिर कहाँ नूर नजर आता है !!
मयखाने भी शमशान का रूप लिए नजर आते है
नशीली शराब का भी फिर कहाँ नशा चढ़ पाता है !!
कभी दर्द-ऐ-दिल का लुफ्त उठा के देख “धर्म”
यूँ रूखी सुखी जिन्दगी जीने में कहाँ मजा आता है !!
!
!
!
रचनाकार :–>> डी. के निवातियां
मोहब्बत जिंदिगी में एक बार तो होनी चाहिए अंजाम फिर चाहे कुछ भी हो.
यथोचित रवि जी ……. प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद !!
बहूत ही अच्छी हैं।
शुक्रिया जुबेर …………!!
बहुत सुन्दर मुहब्बत के भावों से ओतप्रोत रचना
रचना पसंद करने के लिए धन्यवाद शिशिर जी !!
Nice line …….
धन्यवाद अनुज !!
बहुत सही…क्या बात है….
रचना नजर करने के लिए धन्यवाद….. विजय !!
बहुत सुन्दर कविता है, निवातिया जी
शुक्रिया रिंकी जी ….!!