“ये गाली वीर शिवाजी को है
फिर किसी ने प्रताप को ललकारा है आज
क्यूँ नामर्द बने पड़े हो तुम
क्यूँ सुध खोयी है तुमने आज ,
माँ कहके जिस भारत को तुम
रोज गला फाड़ चिल्लाते हो
लुटती उसकी अश्मत पे
क्यूँ तमाशबीन बन जाते हो ,
क्या वीरता हिन्दुस्तानियों की
सिर्फ कहानियों में सिमट जाएगी
या वीर गाथायें सच्ची उनकी
तुम जैसी नामर्द हो जाएँगी ,
माँ की लुटती अश्मत पे
जो सहिष्णु धर्म अपनाते है
है नामर्दो की औलाद सभी वो
और भारतीय कहलाते है ||
ओमेन्द्र आपकी देश प्रेम की भावना की मैं कद्र करता हूँ लेकिन मेरा सुजाहव है कि कविता को पोस्ट करने में जल्दबाजी मत करो. इस रचना में दिए भावों के और अधिक असर के लिए इसे और मथने कि आवश्यकता है. आशा है मेरे सुझाव पर गौर करोगे.नामर्द की जगह और कोई उचित शब्द उपयोग करोगे तो बेह्तर होगा.
सुझाव के लिए धन्यवाद शिशिर जी.
देश प्रेम और ओजस्वी रचना लिखने के लिए बधाई………रचना को प्रभावी बनाने के लिए पर्याय शब्दों का उपयोग बेहतर होगा !
प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद निवातिया जी…अपने अगली रचनाओ में ध्यान रखूँगा ..
हार्दिक आभार आपका ….!!