इबादत क्यों खाली लौट आती है मेरी?
क्यों इस दिल की आह उस तक,
पहुंच नही पाती मेरी?
क्यों वो अन्जान हैं हमसे?
क्यों फरियाद नही सुन पाते मेरी?
सुना है वोह हर जगह होते है,
सुना है उनकी मर्जी से ये फूल खिलते है.
हर मन्दिर मस्जिद मे उनके होने का अह्सास है,
उनसे ही चांद और सुरज में प्रकाश है,
मेरी बातें, मेरी आंखो से बेजुबां समझ जाते है,
फिर क्यों मेरी फरियाद वो सुन नही पाते मेरी?
कहते सुना है वो कण कण में है,
कह्ते सुना है वो सिर्फ एक हि है,
फिर क्यों हर बात मुझ तक ही रह जाती है मेरी,
फिर क्यों फरियाद नही सुन पातें मेरी?
दिव्या बहुत अच्छे भाव हैं लेकिन कविता अंत में थोड़ा सा सुधार मांगती है.
दिव्या जी रचना में मनोभाव बहुत खूबसूरत है……. शिशिर जी का सुझाव सरहानीय है !
मैंने अपने शब्दों में व्यक्त करने की कोशिश की है…… कुछ इस तरह से भाव व्यक्त किये जाये तो अच्छा लगेगा !!
फिर क्यों मेरी फरियाद वो सुन नही पाते मेरी?
सूना है वो बसते कण कण में हर शै: में कई नाम से
राम, रहीम, ईसा, नानक पुकारा मैंने हर एक नाम से
जाने फिर क्यों अरदास उन तक पहुँच नहीं पाती मेरी ?
कुछ तो रहो होगी कमी जो फरियाद नही सुन पातें मेरी ?
दिव्या जी रचना में मनोभाव बहुत खूबसूरत है……. शिशिर जी का सुझाव सरहानीय है !
मैंने अपने शब्दों में व्यक्त करने की कोशिश की है…… कुछ इस तरह से भाव व्यक्त किये जाये तो अच्छा लगेगा !!
न जाने फिर क्यों फरियाद वो सुन नही पाते मेरी?
सूना है वो बसते कण कण में हर शै: में कई नाम से
राम, रहीम, ईसा, नानक पुकारा मैंने हर एक नाम से
जाने फिर क्यों अरदास उन तक पहुँच नहीं पाती मेरी ?
कुछ तो रहो होगी कमी जो फरियाद नही सुन पातें मेरी ?
खुबसूरत भाव व्यक्त किये है आपने सर. हम तह ए दिल से आभार व्यक्त करते हैं.
धन्यवाद दिव्या ……….!!
भाव अच्छे है दिव्या कविता में ।
धन्यवाद मन्जुशा जी
निवातिया जी के सुझाव सराहनीय हैं
बहुत सुंदर……निवतियाँ जी के सुझाव अमूल्य….आपको राचना में रखने चाहिए थे…..