बागो में सारे फ़ुल खिल गए, तितलियाँ देख मुस्कुराई,
पंछी पेड़ों पर चहचहा उठे , जब सुबह ने लि अंगराई।।
जाग जा एै खुदा के बंदे , देख तु चारों और,
तुझे रिझाने ,तुझे जगाने आए है कैसा चितचोर।।
उजली किरणें दे रहि दस्तक , जंगल में नाचे मोर,
तेरे दरवाज़े अब तक खड़ी है , सुन्दर रंगीली भोर ।
कोयल मीठी गीत सुनाए , किसान जोते हल,
अब तो जाग एै नादान परिंदे , सोना फिर तु कल।।
बीत गया जब रात घनेरी, तु सोया अब भी चादर ताने!
कितनी बार तुझे जगाने को आवाज़ लगाई , तेरी ही अपनी माँ ने।।
पागल अब तो आँखें खोल के देख ले रंगीन सुबह कि नज़ारे,
कल का न जाने क्या भरोसा , फिर न आए एैसि बहारें ।।
आज का दिन जब हाथ लगी है , सो के इसे न गवाह,
खुँशिया लेके हमेशा नहीं आति हर दिन कि नयी सुबह।।
सुबह का बहुत खुबसूरत वर्णन किया है “सम्पा जी” आपने……
बहुत बहुत धन्यवाद आस्मा जी , नये साल कि शुभकामनाएँ ग्रहण करे।
प्राकृतिक सोंद्रय से परपूर्ण अच्छी रचना !!
निवादिया जी आपका धन्यवाद । ऐसे हि साहस बढ़ाइएगा, कुशल रहिएगा ।
क्षमा करे नाम ग़लत लिखने के लिए निवातियाँ जी । क्षमाप्राथी हुँ ।