उस कृष्ण आवरण के पीछे कितना आलोक है!
चांद तारों के महीन छिद्रों से झलकताहै जो,
आखों को अनायास ही आकर्षित करता है जो,
वह इस पर्दे को उठाने के लिए उकसाता है
यथा शक्ति प्रबल प्रयास करते हैं हम लेकिन –
हृदय से उठता धुँआ इतना गहरा हो गया है
अलौकिक आलोक की आभा मिलना भी है नामुमकिन
बेहतरीन रचना उत्तम जी.