तुम सदैव मुझे चाँद की उपमा देकर पुकारा करते हो,
कभी आकर्षण में,
तो कभी प्रेम के वशीभूत,
शायद कभी मुझे बहलाने के लिए,
या फिर कभी मुझ उलझाने के लिए.
मुमकिन हो कभी अपनी गुस्ताखियाँ छुपाने के लिए भी ..
तुम कहते हो और मै सुनकर मुस्कुरा देती हूँ …
तुम्हे खुश करने के लिए
और तुम गौरान्वित भी होते हो की शायद तुमने मुझे बहला दिया ….
और मुझे अच्छा भी लगता है
की आखिर कुछ भी हो मुझे आकर्षित तो करते हो
जो भी हो वो तुम्हारी समझदारी और ईमानदारी है तुम जानो ..
मगर हाँ सुनो…….!
मेरे और तुम्हारे चाँद में बहुत फर्क है
इसका का असली महत्व वास्तविक रूप आज मै तुम्हे समझाती हूँ …
मेरी जिंदगी में दो चाँद है
एक वो जो सम्पूर्ण संसार को पसंद है ….
दूजा तुम जिसे मै चाहती हूँ …
उस चाँद से दुनिया रोशन होती है …. और तुम से मेरी जिंदगी.
वरन मेरे लिए दोनों का परस्पर महत्व है
दोनों मेरे लिए एक दूसरे के पूरक है
एक से मेरे सुहाग की आयु में वृद्धि का घोतक है … दूसरे से मेरे जीने का औचित्य
इसीलिए दोनों को एक साथ देखती हूँ
और तुहारे साथ जीवन की मंगल कामना करती हूँ
यदि वो चाँद न निकले तो तुम्हारे लिए पूजा अधूरी ..
और तुम्हारे बिना मेरे जीवन में उस चाँद का कोई आशय नही बचता
अब तुम ही कहो …….!
है न दोनों मेरे लिए एक दूजे के पूरक
समझ गए न मेरे और तुम्हरे जीवन में चाँद का भिन्न्न स्वरुप …!!
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[————-डी. के. निवातियाँ ———-]
Wah bahut khoob. Aisa lag raha hai jaise bolne wala saamne hi hai.
शुक्रिया शिशिर जी !!
बहुत अच्छी रचना
शुक्रिया अनुज !!
बहुत सुन्दर रचना….एक पुरुष होते हुए महिलाओं की सोच को इतने अच्छे तरीके से प्रस्तुत किया है आपने..इसके लिए तो शब्द ही नहीं मिल रहे sir…..उम्दा
शुक्रिया श्याम !!
very touchy…………
शुक्रिया गिरिजा जी !!
सुंदर । दोनों चाँद का महत्व अच्छी तरह समझाया ।
धन्यवाद राज जी !!