हर वक़्त सुबहो शाम जो करते थे गल्तियां ।
आलम न पूछो आज वो ही बताते हैं गल्तियां ।।
उनसे ही हमने सीखा है शराफ़त का ये सबक ।
देखो सुनो सब कुछ मगर बताना न गल्तियां ।।
पूछे कोई उल्फ़त में क्यूँ लुटाया सब कुछ ।
कह देना हर इंसान से होती हैं गल्तियां ।।
‘आलेख’ सोचता हूँ अभी है ज़िंदगी पड़ी ।
एक दिन सुधार लूँगा करी थी जो गल्तियां ।।
— अमिताभ ‘आलेख’
nice ….one !!
thanks dharmendra ji.
जीवन मे ये फेज भी आती है. बहुत सुन्दर रचना
बिलकुल बजा फ़रमाया आपने। शुक्रिया शिशिर जी।