सुनाता है इतिहास युगों का
सम्राटों की विजय गाथाएँ ,
क्या सुनती है कभी यह,
युद्ध मैं सर्वस्य खोया,
इन कृषकों की विरह-व्यथाएँ ?
सुनो ! इन महलो की चमक के पीछे,
गूंज रही स्वर हाहाकार की
सही जिन्होनें यातनाएँ ,
क्या सुनती है इतिहास यूगो की
इन मज़दूरो की व्याकुल-ब्यथाएँ ?
राज्य बना, सम्राज्य टूटा,
पर दुर्भाग्य का साथ देखो इनका,
कल भी था, आज भी ना छूटा,
हाए! तख़्त बदला, पर न बदले,
इनकी करुण दशाएँ,
इतिहास नही, साक्षी शोषण की देखो!
है ये धरती, है ये चारो दिशाएँ I
-पार्थ
Your poem has a unique and different social reality angle. Novel and nice.
Thank you “Madhukar” ji
हिन्दी साहित्य वार्ट्सअप ग्रुप मे आप का स्वागत है ….
ज्वाइन के लिये ९१५८६८८४१८ पर आप का मोब. न. दे …
Thanks
Thank you Anuj ji, I was wondering if you or someone that you know, might be is interested in giving opportunities to new Authors for publishing their work.
बेहतरीन रचना …..!! अति सुन्दर !!
कविता को पसंद करने के लिए धन्यवाद Nivatiya ji.