कुछ तो मुझसे तू बोल सखी,अपने अधरों को खोल सखी
चूनर ढके तन पर तेरे,प्रियतम ने कितने दाग दिए
वो दाग मुझे तू दिखला दे,न अपने को तू रोक सखी
कुछ तो मुझसे तू बोल सखी
टूटी चूड़ी का भेद आज,मुझको तू प्यारी बतला दे
क्यों थकी हुई आंखे तेरी,हो चुकी है जबकि भोर सखी
कुछ तो मुझसे तू बोल सखी
इस चार दीवारी के अन्दर,जो जुल्म तेरे संग होते है
क्यों नहीं रोक पाती उनको,इस बारे में तू सोच सखी
कुछ तो मुझसे तू बोल सखी
ये घर के अन्दर की बात नहीं,ये बात तेरे सम्मान की है
सह लिया बहुत तूने अब तक,अब तोड़ दे अपना मौन सखी
कुछ तो मुझसे तू बोल सखी
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है
स्त्रियों को जागरूक
करने का अच्छा प्रयास।
ये घर के अन्दर की बात नहीं,ये बात तेरे सम्मान की है
nice lines
saral, sahaj abhivyakti
thanks
साहस…हौसले….सम्मान को जागृत करती सुन्दर रचना.