तेरे ही आँखों में पाया था
जहान सारा
जैसे भटके हुए नाव को
मंजिल का सहाराराते अँधेरी सी थी
तू बन के जुगनू सा जला
तपते थे दिन मेरे
तू था ठंडी फुहार लिए
तेरी ही आँखों में देखा था
जादू से भरी दुनिया का सच,झूठ से भी परे
ज़िन्दगी का नज़ारा
मेरे हर रास्ते का मंजिल तू
तुझे चाहते रहना कुछ ऐसा
जैसे हर रात टूटते तारो को ताकना और गिनना
चार दिनों की छोटी ही कहानी थी प्यार की
तेरा देखना और मेरा खो जाना
जैसे घर से बहार गए मुसाफिर का
दुबारा लोट कर न आना
राह देखता आंगन
खुला दरवाज़ा
कहा रहे हो
तेरी ही रंग से भरा है
मेरा खाली मन सारा
तेरे ही आँखों में पाया था
जहान सारा
रिंकी
सुन्दर अभिव्यक्ति !!!
धन्यवाद निवातिया जी,रचना को पसंद करने के लिए