सहारे ढूंढ़ता
मन बैचैन
इन खाली
मकानो में
कब दो पल
साथ मिलें
दौड़ते भागते
इंसानो में
भूख मिटी
ना मन की
बीते कई
जमानो में
खो गई
मन की बातें
बेमतलब के
फरमानों में
कटीली हो गयी
सूखी रोटी
लार टपके
मयखानों में
भोगना है
जितना हो सके
बहशीपन
दीवानो में
बड़े मकान
काली जुबान
धोखाधड़ी
इन्शानो में
दिखता नहीं
दर्द किसी का
इस जालिम
ज़माने में