धरा तो मिला दी, चाँद से मंगल से,
पर, इंसां खुद से, खुदाई से अन्जान हो गया ।
क्यों हो गया, कैसे हो गया॥
भौतिकवादी प्रतियोगी होड़ में, प्रवंचनाओं में,
बैशाखी विक्रेता, पारस प्रमाण हो गया ।
क्यों हो गया, कैसे हो गया ।
हुआ जो तुषारापात सपनों पर, अरमानों पर,
तो आशियाना तिनकों का मोहताज़ हो गया ।
क्यों हो गया, कैसे हो गया॥
जिसने कत्ल किया मानवता का, भावनाओं का,
मानुष वही जनता का सरताज हो गया ।
क्यों हो गया, कैसे हो गया ।
लगा लोह पैबन्द, कागज़ की नाव पर, बेपतवार,
फ़रेबी मल्लाह से भव तरने का करार हो गया ।
क्यों हो गया, कैसे हो गया ।
अश्लील लफ़्फ़ाजी, चुटकले-चाटुकारी मिलकर
अब मंच और श्रोताओं का संस्कार हो गया
क्यों हो गया, कैसे हो गया ।
आपकी यह कविता एक बहुत ही सुन्दर रचना है धन्यवाद् आपका इतनी सुन्दर रचना के लिए