दुश्मनी इस तरह निभाते हैं
दोस्त ही आइना दिखाते हैं।
जिनके हाथों में सिर्फ खन्जर है
वो हमे शायरी सिखाते हैं।
रोज आन्धी सारे दिये बुझाती है
ओर हम रोज एक जलाते हैं ।
कांच के घर बैठकर भी
लोग पत्थर बहुत चलाते हैं।
ना झुकेगी नजर कभी उनकी
दोस्ती जो सदा निभाते हैं ।
एक बच्चे की मुस्कराहट में
जख्म हम अपने भूल जाते हैं ।
होसलां है तो यूं भी जी लेंगे
बेवजह क्यूं कसम दिलाते हैं ।
जब हवा में नमी की आहट हो
हर तरफ फूल मुस्कराते हैं।
दास हिम्मत जिन्हॅ है चलने की
नित नया रास्ता बनाते हैं ।
शिवचरण दास
waah waah bht acchii lagii yeh linee:
जिनके हाथों में सिर्फ खन्जर है
वो हमे शायरी सिखाते हैं।
वाह शिवचरन जी वाह
बहुत ही सुन्दर रचना है.
गुरचरन मेह्ता