Homeसूरदासमन न भए दस-बीस मन न भए दस-बीस पंकज सूरदास 17/12/2011 No Comments मन न भए दस-बीस ऊधौ मन न भए दस-बीस। एक हुतो सो गयो स्याम संग को अवराधै ईस॥ इंद्री सिथिल भई केसव बिनु ज्यों देही बिनु सीस। आसा लागि रहत तन स्वासा जीवहिं कोटि बरीस॥ तुम तौ सखा स्याम सुंदर के सकल जोग के ईस। सूर हमारैं नंदनंदन बिनु और नहीं जगदीस॥ Tweet Pin It Related Posts मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायौ। कबहुं बढैगी चोटी मन माने की बात About The Author पंकज