ज़िंदगी एक अनजाना सफर ही था मेरे लिए
वो मुझे मेरे सफर के रास्ते जैसे मिली
पन्ने काफी लिख चुका था ज़िन्दगी के
वो मुझसे मेरी ज़िंदगी मे नए कागज़ जैसे मिली
वो कल तक पराई ही थी
पर आज कुछ अपनी जैसी लगती है
वो दोस्त है मेरी
पर वो मुझे उससे बढ़ के लगती है
शायद कहीं भूल आया था जिसे
वो वही गुड़िया लगती है
वो कोई जादू की पुड़िया ही लगती है
वो है मेरी ज़िन्दगी में
यही मुझे उस खुदा की नेमत लगती है
दुआएं कबूल हो उसकी
जो भी वो रब से माँगे
मैं तो बस उसके हिस्से में
एक पल बन के रहना चाहता हूँ
उसके आँखों मे आये आँसू
अपने आँखों से बहाना चाहता हूँ
वो दोस्त रहे हमेशा मेरी
बस इसलिए मंदिर की घंटियाँ बजाना चाहता हूँ–अभिषेक राजहंस
बहुत सुन्दर अभि
bahut khoob………..