आज ख्व़ाब में खुद से मुलाकात हुई ,
कई दिनों से खोज रही थी जिसको मैं ,
वो आज ख्व़ाब में मुझसे टकरा गई ।
आंखों में जिसके चमक रहती थी,
हर दम बड़ी-बड़ी बाते करती थी,
लबों पर हमेशा मुस्कान रहती थी,
सपनों में ना जाने कहा खोए रहती थी,
ख्व़ाब उसके सतरंगी थी,
क्या वो ख्व़ाब बाली लड़की मैं थी ।
जिससे कई सालों तक मिल ना पाई,
आज मिली ख्व़ाबो में जब मैं उससे,
थोड़ी सी मैं घबड़ाई,
वो भी मुझे देख थोड़ी घबड़ाई,
फ़िर हौले से वो मुस्काई और हिचकिचाई ।
फ़िर मानो जैसे पहचान लिया हो मुझको,
दो पल चुप्पी के बाद बोली मुझसे,
कहाँ गए तेरे आँखों के सपने,
तेरा वो बड़ी -बड़ी बाते करना,
चेहरे पर वो तेज़ नहीं है,
लबों पर तेरे मुस्कान नहीं है,
क्या तुम वो सब भूल गई ।
वह कह रही थी मुझसे,
पहचान अपने अंदर की शक्ति को,
तू अब भी बहुत कुछ कर सकती है,
चल आज तुम्हें मैं तुमसे ही मिलवाती हूँ ।
सचमुच जब मिली ख्व़ाबो में खुद से
तब आंखों पर से धूल हट गई,
दबी ख्वाहिशे फ़िर से मचल उठीं।
मैं जो भोली-भाली लड़की बन गई थी,
ना जाने कैसे एक पल में बदल गई ।
ख्व़ाबो में ही सही मैंने खुद को जाना था,
अपने सपनों को पूरा करने का हमनें मन में ठाना था
जिसनें दूर किया था मुझको मेरे सपनों से
अब उसे ही कुछ कर दिखाना था ।
मैंने अपने जीवन का असली मकसद जान लिया,
अपनी खोई हुई ताकत हमनें अब पहचान लिया,
अब फ़िर से मेरे आँखों में सपने सलौने सजते है,
जिसको पूरा करने के खातिर कदम खुद ही आगे बढ़ते है ।
भावना कुमारी
बहुत बढ़िया….भावना जी…. जब अपनी बात हो रही है तो “अपनी खोई हुई ताकत हमनें अब पहचान लिया,” हमने की जगह यहां मैंने कर लें….
बहुत बहुत धन्यवाद सर
बहुत खूबसूरत भाव.
बहुत बहुत धन्यवाद सर