आँधियों से व्यथित हो गया दीप है |
वायु उत्पात में अब फँसा दीप है ||
न्याय का देवता आज कायर बना |
उच्चतम न्याय का बुझ रहा दीप है ||
आस विश्वास सब कुछ लगा टूटने |
रोशनी को निगलने लगा दीप है ||
दीप से सुंदरी का दुपट्टा जला |
बन रहा फिर भी’ कितना भला दीप है ||
दीप से ही हजारों पतंगे जले |
अब अतिथि आरती का बना दीप है ||
आज तक थी सुहागन निशा चाँद से |
चाँद का शव जलाने चला दीप है ||
शिव का आदेश सुन दीप रोने लगा |
दास शमशान का बन जला दीप है ||
आचार्य शिवप्रकाश अवस्थी
95825100 29
saamaajik awashthaaon par chinta jhalakti hai ……………samaaj ke doglepan par achchi chot hai
धन्यवाद आदरणीय शिशिर मधुकर जी ||सादर ||