खेत का सोंधी मिट्टी महके
इस पीपल की छाँव में।
सोन चिरैयाँ फिर फिर आवे
मोती चमके पाँव में।।
सरसो पीले फूल से सज गये
गोरी झूमे साँझ में।
बुढ़वा नाचे कमर हिला के
ढ़ोल करताल झाँझ में।।
कहाँ गये वो डमरू भैया
फंस गये काहे जाल में।
मुन्ना मौसी झाडू लेके
थप्पड़ मारे गाल में।।
चौपालों पर भीड़ लगी है
रामायण की पाठ में।
सीख रहे हैं धर्म और भक्ति
बांध रहे हैं गाँठ में।।
ये किसान हैं मेहनत वाले
मार खा जाते भाव में।
भोले भाले मजदूर बेचारे
फंस जाते हैं दाव में।।
हिल मिलके सब साथ में रहते
मंदिर मस्जिद ठाँव में।
वाह रे भैया – वाह रे बाबू
मजा कितना है गाँव में।।
बहुत बढ़िया बिंदु जी………………!