हवाएं चल रही हैं पर कोई खुशबू ना आती है
यही पुरवाइ अब तो तेरे बिन नश्तर चुभाती है
बड़ी कोशिश करी मैंने की अब तू याद न आए
मगर ख्वाबों में आ तू क्यों मेरी नींदे चुराती है
तुझे अल्लाह नें जो ये मरमरी सा रंग बख्शा है
छुपा के इसको नज़रों से मुझे तू क्यों सताती है
ये माना वक्त दुनिया में हमेशा चलता रहता है
प्रीत की वो घड़ी लेकिन मुझी से न भुलाती है
तेरे दिल के बारे में तो मैं कुछ कह नहीं सकता
तेरे बिन ज़िंदगी मधुकर को पर तन्हा रूलाती है
शिशिर मधुकर
बहुत ही खुबसूरत सर
Tahe dil se shukriya Bhavna Ji ……
bahut khoobsoorat………….
Tahe dil se shukriya Babbu Ji ………………