Homeदिनेश कुमार शुक्लबाजी लगी प्रेम की-4 बाजी लगी प्रेम की-4 विनय कुमार दिनेश कुमार शुक्ल 29/03/2012 No Comments जब बरबस ही रसधार बहे जब निराधार ही चढ़े बेल बिन बादर की जब झड़ी लगे बिन जल के हंसा करे केलि तब जानो वह पल आन पड़ा जिस पल अपलक रह जाना है अब मिलना और बिछुड़ना क्या भर अंक में अंक समाना है… और आँख खुली रह जाना है। Tweet Pin It Related Posts भीतर की बात आँखिन देखी बाजी लगी प्रेम की-3 About The Author विनय कुमार Leave a Reply Cancel reply