जब घृणा किसी से हो जाए तो कैसे बात करें मन की
अब कुदरत की महर नहीं हर डाली सूखी है उपवन की
जहाँ प्रेम मिले सम्मान मिले वो घर मंदिर सा होता है
रिश्तों में सच्ची श्रॄद्धा ही बस पूंजी है इस जीवन की
जब मन गैरों पे ना भटके और अपनों पे अभिमान रहे
वो ही तो असली शक्ति है सारी दुनिया में यौवन की
लाख दफा मैंने खोजी उन आँखों में छवियां अपनी
जब मिला नहीं कुछ ढूंढे से आस नहीं उस चितवन की
झूले तो पड़ गए बागों में पर बादल फिर भी ना बरसे
ऐसी तो उम्मीद न थी मधुकर साखियों को सावन की
शिशिर मधुकर
bahut badhiya………….
Dhanyavaad Babbu Ji ……
Lovely creation ….!
So very nice of you Nivatiya Ji …….