पुष्प बेल
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मेरे आँगन में ख़ुशियाँ खिलखिलाती है
मन उपवन तितलियाँ सी फुरफुराती है
धरा सी माता नभ से पिता की छाँव में
बेटियों के रूप में पुष्प बेल लहलाती है !!
घर की मुंडेर चिड़ियों सी चहचहाती है
बनकर पुष्प-सुगंध आँगन महकाती है
पुलकित रहता है घर का कोना कोना
अपनी किलकारियों से मन हर्षाति है !!
दर्द समेटे जाने कितने,आह तक न आती है
मुसीबतो के पल कभी चेहरे न झलकाती है
पत्थरो सी कठोर बन चट्टानों सी अडिग रहे
रोती आँखों से हँसते-हँसते जीवन जी जाती है !!
डी के निवातिया
बहुत ही खुबसूरत रचना है सर
Betiyon ke liya sundar bhaavyukt rachnaa Nivatiya Ji …….
Aapne betio ki mehtta ko jis khubi se darshaya hai vo kabile tarif hai.
बेहद खूबसूरत कविता बेटियों के लिए।
वाह्ह्ह्ह…..बेहद भावपूर्ण….लाजवाब…..बेटियों को समर्पित भाव वंदनीय हैं….जय हो….
Bahut hi sunder rachna….