गलती तभी होती है जब कोई भी विकल्प नहीं होता
समस्या जस की तस रह जाती,काया कल्प नहीं होता।
उत्पादन कम और बड़ी जन समूह, कौन बचाएगा इसे
खेत से लेकर बाजार तक,कम दामों में कौन लाएगा इसे।
खेतों की उर्वरकता घट गई, खाद और रसायन तत्व कब तक
वास्तविकता से अलग हो कर, बचाते रहेंगे अस्तित्व कब तक।
रसायनिक से पैदावार बढ़ाए जा रहे,उमर की सीमा घटाये जा रहे
फल सब्जियां सुई देकर, बढ रहे अब,अधकच्चे को पकाये जा रहे।
मिलावट की ये हद हो गई, अछूती अब कुछ भी नहीं है
किसान अब रो रोकर मर रहे,छूटी अब कुछ भी नहीं है।
दलालों की कट रही चांदी, गरीबों का हाल अब बेहाल है
हर तरफ मारा मारी, हर तरफ बेकारी,सब माया जाल है।
चिकित्सक लूट रहे, शिक्षक बिक रहे, वकीलों का बाजार गरम है
छल, कपट, अपहरण, लूट घोटाला, अश्लीलों का बाजार चरम है।
हद हो गई, सरकार की पकौड़ी नीति और चाय की गरम प्याली
मुहल्ले की चार दुकानें चलती नहीं, चौदह खोल कर बैठे खाली।
एक लाख वालों की कुर्की जब्ती, सौ करोड़ वालों को चुम्मा-चाटी
बैंक वाले अजब- गजब है भैया, ऐसे-वैसे खोजते पौआ – पाटी।
नियम कानून, सारे गरीब के उपर,अमीर बजाते ताली
विन्दु सोचता यही रह गया, किसको दें अब गाली।
बिलकुल सही कहा आपने सर। बहुत ही सुन्दर रचना।
bahut bahut sukriya bhawana jee.
sahi bat h bindu ji ……..ek gujarish h apse…नियम kr lijiye to thik hoga …… sorry bura n mane……..
जी बेहतरीन……….
बहुत बहुत शुक्रिया मधु जी।
मधु जी – मैंनें शब्द ही बदल दी। फिर से गौर फरमाएं।
बहुत बढ़िया….समय के साथ आती कुरीतियों का दर्पण….कटाक्ष लिए….
tahe dil aabhar sir jee.
बहुत अच्छे बिंदु जी………..गहरे कटाक्ष के साथ वर्तमान जीवन परिदृश्य को बड़े अच्छे शब्दो में समेटने की कोशिश की आपने।
bahut achchhe subhchintak ko mera pranam.
बहुत ही बढ़िया…… अनेकों कुरीतियों को दर्शाया
आपने रचना में……. ।।
kajal jee – bahut bahut sukriya.
Bahut khoob
angali jee aap ka sadar aabhar……
Lovely sarcasm Bindu ji ……..
bahut bahut sukriya shishir sahab.
Bahut sundar…
sarahana ke liye bahut bahut sukriya anu jee.