रहता हूँ गाँव में
कहलाता हूँ गँवार ।
किसानी है पेशा मेरा
कभी व्यस्त तो कभी बेकार ।
खपाता हूँ जीवन अपना
खपाया है परिवार ।
अनाज का हर दाना दाना
मानता मेरा उपकार ।
अन्न दाता है खुदा
बनाया मुझे भी भागीदार ।
खुन पसीना सिंच कर
लाऊ बंजर में पैदावार ।
करु दृढ़ निश्चय
तो हरा भरा हो बाजार ।
मुझ बिन खेत है सुने
व्यर्थ सभी औजार ।
घमंड नहीं जरा भी मुझको
भुला नहीं संस्कार ।
जीवन है जुआ मेरा
कभी जीत तो कभी हार ।।
” काजल सोनी ”
Bahut Sundar, Kajal ji…
तहे दिल से आभार आपका अनु जी…..
bhut khoob kajal ji…………………
तहे दिल से आभार आपका मधु जी…….
बहुत ही सुन्दर रचना सोनी जी।
तहे दिल से आभार आपका भावना जी…….
bahut sundar…………….
तहे दिल से आभार आपका शर्मा जी…..
Vaastvik chitran Kajal………
तहे दिल से आभार आपका मधुकर जी……
ati sunder rachna …. badhai ho.
तहे दिल से आभार आपका बिंदु जी……
यथार्थ को समेटे बहुत खूबसूरत रचना……..।।
तहे दिल से आभार आपका निवातिया जी…….