*बस यही है आरजू*
बह्र 2122 2122 2122 212
बस यही है आरजू नज़रें झुका कर देख लो,
बेवजह दो चार पल ही मुस्करा कर देख लो।
देखना हो देख लो क्या चाहती है ये फिजां,
इस फिजां की रूह में खुद को बसाकर देख लो।
वक्त ने तुमको दिया है आजमाने का हुनर,
आज मेरे दिल में क्या है आजमा कर देख लो।
लिख रहा हूँ ये ग़ज़ल मैं आँसुओं में डूबकर,
दर्द कितना है मुझे आँसू बहाकर देख लो।
आशियाँ महफूज हो तूफां भले आते रहें,
रुख हवा का है किधर शम्मा जला कर देख लो।
जानना हो गर सितम,मुझ पर किया क्या वक्त ने,
एक पत्थर लो उसे फिर बुत बनाकर देख लो।
-‘अरुण’
बेहतरीन रचना अरुण…..
पुनश्च सादर आभार सर
ati sundar………….
सर आभार
बहुत खूबसूरत अरुण जी ……………..!!
बहुत बहुत धन्यवाद सर
बहुत ही सुंदर कृति… अच्छी पृष्ठभूमि के साथ बेहतरीन।
अभी असन्तुष्ट हूँ।
Ati sunder, Lajawab Rachna Arun ji
जी आपका आभार
बहुत बढ़िया अरुण जी।
आभार सर
बहुत ही सुन्दर रचना है सर
सादर आभार
बहुत ही खूबसूरत….. लाजवाब रचना…. अरुण जी…
सादर आभार
अभी इससे सन्तुष्ट नहीं हूँ।कुछ और edit करना है।
फिर से कुछ कहा है।
अब नज़र करें।