तेरी दुआओं में इतना असर है
कि मेरे घरवालों को तेरी खबर है
तू मेरे पास कुछ इस कदर है
नीम के पास चन्दन का शजर है
दूर है मुझसे तो क्या हुआ
तुझ पर नजर आठों पहर है
बहती गंगा में हाथ धो तो लूँ
लेकिन इसमें रहता कोई मगर है
सुना है कोई प्यासा मर रहा है
जिसकी खुद की एक नहर है
बेवफाई होती क्यों जल्दी है
लगता है वफ़ा कोई बड़ा जहर है
कवि – मनुराज वार्ष्णेय
बहुत ही सुन्दर रचना।
धन्यवाद भावना जी …
bahut badiya Manuraj jee….
धन्यवाद बिंदवेश्वर जी …..
अति सुंदर ……………………और बेहतर की गुंजाइश नजर आती है है इस रचना में !
धन्यवाद निवातिया जी ..
बहुत ही सुंदर…..
बहुत बहुत आभार काजल जी …..