दिवंगतों को मत बदनाम करो
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अपने पूर्वजो की गैरत कटघरे ला दी
तुमने आकर मीठी बातो में !
सत्तर साल की कामयाबी मिटा दी
तुमने आकर के जज्बातो में !!
कौन कहता है
देश में कोई काम नहीं हुआ
सत्तर सालो में क्या
अपना भारत आबाद नहीं हुआ !
दिवंगतों को मत बदनाम करो
अपनी झूठी शान दिखाने के लिए
वक़्त के अनुकूल काम किया
भारत को पहचान दिलाने के लिए !!
कुछ काम अगर ना हुआ होता
तुम यू बातो की न खा रहे होते
पहनकर सूट बूट निराले आज
मखमली गद्दों पे न सो रहे होते
माना पहले रफ़्तार धीमी थी
गाडी अब पटरी पर आई है
मगर ज़रा पूछो अपने बड़ो से
कितनी ज़हमते उन्होंने उठाई है !
याद करो जब देश आज़ाद हुआ था
क्या हमने खोया था क्या पाया था
मिटाकर लाल अपने बेश कीमती
लहूलुहान धरा का टुकड़ा पाया था !
टूटी झोपडी, टूटी मड़ैया
तन पर कपडा मुहाल था
भूखे प्यासे पूर्वज रहे है
महामारियों से बुरा हाल था !!
लालकिले से झूठ बोलकर
लोगो को आज लुभाते हो
गलत आकड़े बतलाकर
झूठा अपना रंग जमाते हो !!
क्यों ऐसा तुम करते हो
क्या खुद पर रहा विश्वास नहीं
दल बल से लेकर धन तक
बोलो क्या अब तुम्हारे पास नहीं !!
भ्रष्टाचार की बात करते हो
पहले खुद का घर साफ़ करो
जितने भी दागी है नेता
अपने दल से शुरुआत करो !!
नियत अगर साफ़ है
तो क्यों गुंडो को सहभागी बनाते हो
जिनको भान नहीं घर का
मंत्रालय का भार उनके हाथ थमाते हो !!
जितने भी है दागी नेता,
उनके खिलाफ एक कानून पास करो
जो भी कोई विरोध करे
पहले संसद से उसका पत्ता साफ़ करो !!
सत्तर सालो से देखते आये है
हर कोई उन्ही मुद्दों पर वोट मांगता है
नेता बनकर पांच साल तक
फिर न कोई उन गाँवों में झांकता है !!
आज़ाद हुआ था देश अपना
पर सत्ता आज तक गुलाम नजर आती है
जिसने पकड़ी कुर्सी एक बार
फिर बाप दादाओ की जागीर बन जाती है !!
देश अगर विकास राह ले जाना चाहते हो
व्यवस्था में अमूल चूक परिवर्तन करो
धन और सत्ता के लालच से बाहर निकलो
धनपतियों की कठपुतली बनना बंद करो !!
तुम पर भरोसा जताकर
जनता ने गद्दी पे तुम्हे बिठाया है
फिर भी बदले में अभी तक
बेचारो ने कौन नया सुख पाया है !!
हाल आज भी वही पुराना,
गाँव गाँव, गली गली में दिखता है
हत्या, बलात्कार, गुंडागर्दी
अस्मित, ईमान चौराहो पर बिकता है !!
राजन नारी रक्षा की कसम खाता है
मंत्री और संतान भक्षक बन मजाक उडाते है !
क्यों नहीं अंकुश लगता उन पर
हिम्मत कर क्यों दो-चार को नहीं शूली चढ़ाते है !!
सूखा हो या बाढ़ का मुद्दा
साल दर साल बेचारी जनता सहती है
मजदूर किसान या हो जवान
क्यों किस्मत इनसे सदा खफा रहती है !!
नौकरशाही, अफसर शाही
केवल जनता पर ही क्यों पड़ती भारी है
गौरखपुर हो या खतौली
दिन महीने साल त्रासदी से जनता हारी है !!
जनता वही है देश वही है
संसद में भी वही राज घराने है
कहने को सरकार बदलती
पर नेताओ के अंदाज़ पुराने है
इरादे अगर नेक है
तो खुलकर सच्चाई बतलाना सीखो
खामियों में करो सुधार
अपना भरोसा जनता पर जताना सीखो
जनता तुमको चाहती है
तभी तो मतविश्वाश तुम्हारे हाथ है
अच्छा करोगे, राज़ करोगे
तभी तो ये जनता तुम्हारे साथ है !!
छोडो एक दूजे पर दोषारोपन
राजनीति में अब नैतिकता को अपनाओ
युवा देश का खड़ा दो राहे पर
सत्य और सक्षमता से उनकी पहचान कराओ !!
कर जाओ तुम भी कुछ ऐसा,
युगो युगो तक चलता तुम्हारा नाम रहे !
नव युग के तुम प्रेरणास्रोत रहो
तुम सा बन जाना हर किसी का अरमान रहे !!
जय हिन्द ! जय भारत !
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!! डी के निवातिया !!
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आप सभी भद्रजनो से गुज़ारिश है कि रचना को पूरा पढ़कर अपने अमूल्य विवेचनात्मक / विश्लेषणात्मक/ आलोचनात्मक / विचारो से अनुग्रहित करे …!
रचना में कही गयी बातो में मात्र समस्या नहीं उपचारो पर भी विचार किया गया है, उक्त विचारो से आप कितने सहमत …..अपना मत अवश्य साझा करे …..धन्यवाद !
सभी साहित्य रसिको का हृदयतल से आभार ……!!
बहुत ही उम्दा लेखन ,,,वास्तविकता का सजीव चित्र आपने इन पंक्तियों के माध्यम से प्रदर्शित किया है ,,,,,किसी भी देश को विकास करने में पर्याप्त समय लगता है और हमारे भारत देश जहां पर हर धर्म हर जाति को सम्मान दिया जाता है ,,सबकी भावनाओं को महत्व दिया जाता है ऐसे देश का विकास तभी संभव है जब प्रत्येक भारतीय अपनी जिम्मेदारी को समझे और भारत को विकास की राह पर अग्रसर करने के लिए उचित प्रयास करे ,,,यह कर्तव्य हर भारतीय का है,राजा का ही नही प्रजा का भी है ,,,,,इसलिए जब तक हम मिलकर प्रयास नही करेंगे तब तक विकास नही कर सकते ,,,,,,,,,,,बहुत ही अच्छा प्रयास है आपका ,,,आपका लेखन हम सभी को सोंचने पर मजबूर करता है ,,,हमारे चेतना को जाग्रत करता है ,,,ऐसी ही अपनी लेखनी की तूलिका से यथार्थ को प्रदर्शित करते रहिए सर ,,,,,
सत्य कहा आपने ……..आपके विचारो से पूर्णतया सहमत हूँ ………..विस्तरात्मक रूप से बेबाकी के साथ अपने विचार साझा करने के लिए हृदयतल से आभार……………सीमा वर्मा जी !
यथार्थ लिखा है आपने।
कविता लम्बी है लेकिन तमाम प्रश्नों का हल छोड़ने वाली है।
बधाई
कविता विस्तृत होने के बावजूद आपने पूरी पढ़कर अपने अमूल्य साझा किये इसके लिए हम तहदिल से शुक्रिया अदा करते है ………. धन्यवाद अरुण जी !
यथार्थ के धरातल पे लिखी सन्देश परक….आत्मवलोकन प्रेरित करती रचना…. बिल्कुल सही कहा अपने की आजादी के समय भारत में कोई इंडस्ट्री नहीं थी…कुछ नहीं था…धीरे धीरे वक़्त के साथ हर किसी ने योगदान दिया इसमें…सरकार कोई भी थी उसने कार्य अवश्य किये हैं…कहीं रफ़्तार धीमी रही तो कहीं तेज पर कार्य तो अवश्य हुए हैं… ये और बात है की कुछ मामलों में कार्य में और तेजी लाई जा सकती थी…जैसे पीने के पानी…स्वस्थ्य समबन्धी सेवाओं में….मैं सरकार के साथ साथ जनता को भी दोषी मानता हूँ… जैसे विकास ने रफ़्तार पकड़नी शुरू की…हमने अपने सबर को खोना शुरू कर दिया…हर किसी को रिजल्ट तुरंत लेने की इच्छा होने लगी…जिसने दोषारोपण की स्थिति को जन्म दिया….अपने कर्तव्यों को…सहभागिता को हम भूल गए… सिर्फ हक़ जताने पे लगे रहे… नैतिकता बोलने की…व्यवहार की लुप्त होने लगी… इसमें कोई भी सरकार हो उसका कसूर नहीं है…ये हमारा ही है… अब स्वच्छ भारत अभियान ही लें तो ये सब की जिम्मेवारी है की अपने को साफ़ रखें…घर साफ़ रखेंगे लेकिन कूड़ा गली में…सड़क में आते जाते डालेंगे…केले के…मूंगफली के छिलके आम देखने को मिलते हैं..सड़कों पे…गलियों में…..हम घर में कुत्ते को शौच पे नहीं ले जाते…बाहर सड़क पे करवाने ले जाते हैं…गली में करवाते हैं…. और अगर जुर्माना लगने लगे तो अक्ल आएगी… पर उसके लिए भी हिम्मत चाहिए… हम अपने देश में क़ानून का पालन नहीं करते…लेकिन बाहर के देश में हम पालन करते हैं…इस लिए की वहां जुर्माना है…सख्त हैं नियम… जब तक दंड व्यवस्था नहीं होगी सही ढंग से जिम्मेदारी ऊपर से नीचे तय नहीं की जायेगी…वो चाहे मंत्री हो…संत्री हो या आम आदमी तो हालात बिगड़ते ज्यादा हैं…
सत्य कहा आपने ……..आपके विचारो से पूर्णतया सहमत हूँ ………..विस्तरात्मक रूप से बेबाकी के साथ अपने विचार साझा करने के लिए हृदयतल से आभार बब्बू जी !
आजादी के बाद इन 70 सालों में जितनी बदलाव होनी चाहिए, वह हमें कम नहीं आंकनी चाहिए। उन विसम परिस्थितियों में कुछ अच्छे भी हुए और कुछ गलत भी। देश के इन स्थिति और परिस्थिति में हम भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। एक दूसरे के प्रतिरोपन और फिर एक दूसरे पर दोषारोपन करना कदापि उचित नहीं है।
आप ने तो पूरी कहानी का विश्लेषण भी बहुत सरल और सजग भाषा में दर्शाया है, वह कम सराहनीय नहीं है। बहुत सुन्दर रचना। धन्यवाद…….
अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए तहदिल से शुक्रिया आपका बिंदु जी .!
आजादी से लेकर आज तक का अद्भुत दृश्य संयोजन | सामान्यत: कविताओं या साहित्य की अन्य विधाओं में साहित्यकार हल देने से बचते हैं, पर, आपने बेबाकी से कहा
‘देश अगर विकास राह ले जाना चाहते हो
व्यवस्था में अमूल चूक परिवर्तन करो
धन और सत्ता के लालच से बाहर निकलो
धनपतियों की कठपुतली बनना बंद करो !!’
बेहतरीन रचना| बधाई|
अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए तहदिल से शुक्रिया आपका शुक्ला जी .!
Bahut. Hi khubsurat rachna,,,
Thank u very Much JUBER
बहुत खूबसूरत रचना समाज की सच्चाई को उजागर करती रचना , आज़ादी से आजतक भारत विकास तो की है पर बहुत कुछ से आज़ादी भारत को नहीं मिला है , कहीं न कही इसका जिम्मेदार सरकार ही नहीं हम भी है , देश अभी परिवर्तन की राह से गुजर रहा है ,और देश के नेताओं राजनीतिक फ़ायदा उठाने के लिए पुरानी सरकार पर दोष मढना कोई नयी बात नहीं है , देश के विकास तभी संभव है जब देश की जनता भी अपनी जिम्मेदारी समझे और सभी राजनीतिक पार्टियां मिलकर काम करे , युवा सक्ती भी अपना कर्तव्य निभाये
डी.के. सर बहुत शानदार रचना है
अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए तहदिल से शुक्रिया आपका दुष्यंत जी .!
निवतिया जी उत्तम व्यंग के माध्यम से आपने मुद्दों को बड़ी खूबसूरती से उभारा है.
अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए तहदिल से शुक्रिया आपका SHISHIR JI.
अति सुन्दर रचना हैं सर
अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए तहदिल से शुक्रिया आपका SUDESH JI.
Amazing Uncle ji
अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए तहदिल से शुक्रिया आपका SIDDHARTH.
बहुत ही उम्दा लेखन ,,,वास्तविकता का सजीव चित्र आपने इन पंक्तियों के माध्यम से प्रदर्शित किया है ,,,,,किसी भी देश को विकास करने में पर्याप्त समय लगता है और हमारे भारत देश जहां पर हर धर्म हर जाति को सम्मान दिया जाता है ,,सबकी भावनाओं को महत्व दिया जाता है ऐसे देश का विकास तभी संभव है जब प्रत्येक भारतीय अपनी जिम्मेदारी को समझे और भारत को विकास की राह पर अग्रसर करने के लिए उचित प्रयास करे ,,,यह कर्तव्य हर भारतीय का है,राजा का ही नही प्रजा का भी है ,,,,,इसलिए जब तक हम मिलकर प्रयास नही करेंगे तब तक विकास नही कर सकते ,,,,,,,,,,,बहुत ही अच्छा प्रयास है आपका ,,,आपका लेखन हम सभी को सोंचने पर मजबूर करता है ,,,हमारे चेतना को जाग्रत करता है ,,,ऐसे ही अपनी लेखनी की तूलिका से यथार्थ को प्रदर्शित करते रहिए सर ,,,,,
सत्य कहा आपने ……..आपके विचारो से पूर्णतया सहमत हूँ ………..विस्तरात्मक रूप से बेबाकी के साथ अपने विचार साझा करने के लिए हृदयतल से आभार……………सीमा वर्मा जी !
सुन्दर रचना सर
वर्तमान परिपेक्ष्य में संजीवनी सी लगती हुई
बस “अमूल चूक ” का मतलब नहीं समझ पाया
अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए तहदिल से शुक्रिया आपका अभिषेक ….!
यह आम बोलचाल की भाषा का शब्द है ……..”अमूल चूक ” से तातपर्य किसी विषय में रही उन “खामियों” या “कमियों” से है ……….यथा समय जिनकी आवश्यकता है लेकिन उचित परिवर्तन नहीं किये गए है………..!
बहुत ही सही लिखा है आपने निवातिया जी…..
सिर्फ नाम कमाने के लिए किसी अन्य पर
दोषारोपण करना कभी भी उचित नहीं है।
हमारे देश के विकास में पुर्व के महान लोगों
का भी विशेष योगदान रहा है…
धीरे धीरे ही इतना विकास सम्भव हुआ है
आज के नेता अगर निस्वार्थ भाव लेकर
कोई कार्य करें तो समाज को और भी बेहतर बनाया
जा सकता है…. पर यहाँ लोग समाज को बेहतर
बनाने के लिए नहीं बल्कि कुर्सियों पर सत्ता जमाने
लिए लडते नजर आते हैं।
बहुत ही बेहतरीन रचना आपकी…..
रचना को नजर कर अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए तहदिल से शुक्रिया आपका काजल जी ……..!
रचना को नजर कर अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए तहदिल से शुक्रिया आपका काजल जी ……..!